Wednesday, July 30, 2025

होलीमैन ऑफ कानपुर थे स्वामी भास्करानन्द सरस्वती

कानपुर इतिहास समिति द्वारा ओम कोचिंग, गोविन्दनगर में 126वां महासमाधि स्मृति दिवस भास्करानंद स्तोत्र पाठ कर मनाया गया। समिति के महासचिव अनूप कुमार शुक्ल ने कहा कि कोलकाता के टाउनहाल मे पत्रकारो के प्रश्नों के उत्तर देते हुए अमेरिकी साहित्यकार मार्क ट्वेन ने कहा था “स्वामी जी (भास्करानन्द सरस्वती) ऐसे व्यक्ति हैं जो भारतवर्ष के एक छोर से दूसरे छोर तक अपनी तपश्चर्या एवं पवित्रता के लिए पूजे जाते हैं|” इसके बाद मार्क ट्वेन ने स्वामी जी का दिगम्बर चित्र दिखलाते हुए कहा था कि “वे एक देवता हैं|” मार्क ट्वेन ने स्वामी भास्करानन्द सरस्वती जी का 4 फरवरी 1896 ई० को काशी मे साक्षात्कार किया था, स्वामी जी से की भेट का विस्तार से वर्णन अपने ग्रंथ “मोर ट्रैम्पस एब्राड” मे किया है|

दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय के संस्कृत अध्यापक देवांशु पाण्डेय ने बताया कि कानपुर जनपद लघुकाशी के रूप मे ख्यात मैथा, मारग में कान्यकुब्ज हिमकर के मिश्र पण्डित मिश्रीलाल मिश्र के घर आश्विन शुक्ल सप्तमी संवत 1890 वि० (1833 ई०) में एक शिशु जन्मा जो मतिराम और कालान्तर मे स्वामी भास्करानन्द सरस्वती के रूप मे ख्यात हुआ|

पण्डित विश्वंभरनाथ त्रिपाठी ने कहा कि स्वामी जी के जन्म के समय तीन तेजस्वी सन्त प्रकट हुए और पंडित मिश्रीलाल जी से कहा कि आज ब्रह्मबेला मे आपको पुत्रलाभ होगा जो करोड़ो आप्तजनो को आनन्द देगा,आप शिशु का प्रथम दर्शन मुझे करायेंगे। जन्म होने पर सन्तो शिशु का मुखदर्शन कर हवन किया और विलुप्त हो गये। शिशुजन्म और सन्तो के पूजन की कौतुकपूर्ण घटना पूरे गांव मे फैल गई लोग शिशु को देखने आने लगे। बालक का नाम मतिराम रखा गया डॉ सुमन शुक्ला बाजपेई ने कहा कि अमेठी नरेश के दुर्गाकुंड स्थित आनन्दबाग काशी में स्वामी जी का दीर्घ प्रवास रहा। स्वामी भास्करानन्द जी तपस्या करने के साथ ग्रंथो का भी प्रणयन किया| १- स्वराज्यसिद्धि की टीका, २-दशोपनिषद की टीका, ३- नलोदय काव्य की व्याख्या ४- अनुभूतिविवरण प्रमुख है|

शुभम् त्रिपाठी ने कहा कि 20 दिसम्बर 1898 को भारत सरकार की सेना के जंगी लाट (कमान्डर इन चीफ) सर विलियम लाकहर्ट ने स्वामी जी का दर्शन किया| जंगीलाट ने अपनी बहादुरी के किस्से भी सुनाये, स्वामी जी मुस्कराते हुए पास मे रखी पेन्सिल को जंगीलाट से उठाने को कहा महद्आश्चर्य जंगीलाट से वह पेन्सिल नही उठी न टस से मस हुई| स्वामी जी ने कहा कि तुम्हे युद्ध मे जो जयलाभ मिला है| वह जय पराजय कर्ता केवल एक ईश्वर है| जिस प्रकार मैने तुम्हारी शक्ति का हरण कर लिया और तुम पेन्सिल नही उठा सके इसलिए जय पराजय कर्ता ईश्वर है हमे उस पर निर्भर है| उस समय जंगी लाट के साथ उसकी पत्नी व सैन्य सचिव कर्नल वी डफ एवं काशी के कलेक्टर व कमिश्नर भी थे|

हर्षित सिंह बैस ने कहा कि भारतवर्ष के राजाओ मे दरभंगानरेश लक्ष्मीश्वर सिंह, काशीनरेश ईश्वरीप्रताप सिंह, अयोध्यानरेश प्रतापनारायण सिंह अमेठीनरेश लालमाधव सिंह,बड़हर की रानी वेदशरणि कुँवरि , नगोद नरेश यादवेंद्र सिंह, भिनगा नरेश उदयप्रताप सिंह चौधरी महादेव प्रसादव भूदेव मुखोपाध्याय प्रमुख भक्त थे ।सन्तो मे तैलंग स्वामी, लाहिड़ी महाशय, विशुद्धानंद सरस्वती, विजयकृष्ण गोस्वामी,स्वामी विवेकानंद प्रमुख थे| भास्कानंद इण्टर कॉलेज के प्रबंधक विनय सुकुल ने कहा कि स्वामी जी के विदेशी भक्तो मे क्वीन विक्टोरिया के बेटे एडवर्ड सप्तम् ,जर्मन सम्राट विलहेल्म द्वितीय व प्रिन्स विस्मार्क ,रूस के जार निकोलस , वेल्जियम सम्राट डा पाल डायसन व ईसाई धर्माचार्य डा फेवर बर्न व जेम्स लाटूश प्रमुख थे|देश व विदेश सभी स्थानो पर आपके स्मारक बने है कानपुर मे मैथा, रूरा,नर्वल ,अमौर मे मन्दिर है|

डॉ नीलम शुक्ला ने कहा कि देह त्याग से पूर्व स्वामी जी ने अपने अन्तिम विचारों को बैरिया बलिया के पद्मदेवनारायण से प्रकाशित कराया था। सन् 1899 के जुलाई मास के प्रथम सप्ताह मे स्वामी जी उदर रोग से ग्रस्त हुए और पूर्व घोषित तिथि 9जुलाई 1899 (अषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा संवत 1956वि०) को भजन सुनते हुए पदमासनस्थ चिरसमाधि मे लीन हो गये| संगोष्ठी में विश्वंभर नाथ त्रिपाठी, विनय सुकुल, डॉ सुमन शुक्ला बाजपेयी, डॉ नीलम शुक्ला, देवांशु पाण्डेय,शुभम् त्रिपाठी, हर्षित सिंह बैस, कुणाल सिंह अनूप कुमार शुक्ल उपस्थित रहे

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