Thursday, July 31, 2025

‘पुस्तक समीक्षा’ – श्रीदेवी मुसद्दी: एक विस्मृत स्वतंत्रता सेनानी

यह पुस्तक “कानपुर की अल्पज्ञात महिला आंदोलनकारी: श्रीदेवी मुसद्दी” डॉ. मनीषा दीवान द्वारा लिखित, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक गुमनाम नायिका, श्रीदेवी मुसद्दी के जीवन और कृतित्व पर प्रकाश डालती है। अमन प्रकाशन द्वारा सन् 2024 में प्रकाशित यह पुस्तक उन अनेक अल्पज्ञात व्यक्तियों को समर्पित है जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने पुस्तक की प्रशंसा करते हुए कहा है कि श्रीदेवी जी जैसी साहसी और प्रेरणादायी महिला, जिन्होंने रूढ़िवादी समाज की सीमाओं को तोड़कर स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उनका जीवन आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत है राज्यपाल के अनुसार, यह पुस्तक आंदोलनकारियों के इतिहास को समृद्ध करने का एक सराहनीय प्रयास है

पुस्तक श्रीदेवी मुसद्दी के असाधारण व्यक्तित्व और उनकी निस्वार्थ सेवा को सामने लाती है। यह उनके त्याग, समर्पण और साहस को दर्शाती है, जो देश की स्वतंत्रता के लिए किए गए उनके योगदान को रेखांकित करता है लेखिका ने श्रीदेवी के व्यक्तिगत जीवन के पहलुओं को भी छुआ है, जिसमें उनके 90 वर्षीय पुत्र श्री रमेश मुसद्दी और उनकी पत्नी श्रीमती कुसुम मुसद्दी का उल्लेख है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह शोध व्यक्तिगत साक्षात्कारों और पारिवारिक स्रोतों पर आधारित है, जो पुस्तक की प्रामाणिकता को बढ़ाता है।

पुस्तक में उन घटनाओं का भी वर्णन है जो श्रीदेवी मुसद्दी के क्रांतिकारी स्वभाव को दर्शाती हैं। उदाहरण के लिए, यह बताया गया है कि उन्होंने किस प्रकार प्रसिद्ध क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को अपने घर में छह महीने तक शरण दी एक अविश्वसनीय घटना का भी जिक्र है जहाँ उन्होंने आज़ाद को पुलिस से बचाने के लिए उन्हें नौकर के रूप में प्रस्तुत किया और एक पुलिस इंस्पेक्टर की कलाई पर राखी बांधी, जिससे आज़ाद सुरक्षित निकल सके । ये घटनाएँ उनके अटूट साहस और क्रांतिकारियों के प्रति उनके गहरे समर्थन को दर्शाती हैं।

श्रीदेवी मुसद्दी केवल स्वतंत्रता संग्राम तक ही सीमित नहीं थीं, बल्कि उन्होंने सामाजिक सुधार के कार्यों में भी सक्रिय भूमिका निभाई । उनके सार्वजनिक, राजनीतिक और समाज सेवा के कार्य उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। पुस्तक में यह भी बताया गया है कि उनके पिता के संस्कारों और विचारों का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा था, हालांकि मारवाड़ी समाज में उस समय महिलाओं के लिए इतनी जागरूकता नहीं थी सिविल अवज्ञा आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी भी पुस्तक में रेखांकित की गई है

कुल मिलाकर, “कानपुर की अल्पज्ञात महिला आंदोलनकारी: श्रीदेवी मुसद्दी” एक महत्वपूर्ण जीवनी है जो एक ऐसे व्यक्ति के जीवन को सामने लाती है जिसे इतिहास में शायद पर्याप्त पहचान नहीं मिली है। यह पुस्तक न केवल इतिहास के छात्रों के लिए बल्कि आम पाठकों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है, जो यह दर्शाती है कि स्वतंत्रता संग्राम में हर छोटे से छोटे योगदान का कितना महत्व था। डॉ. मनीषा दीवान ने श्रीदेवी मुसद्दी के जीवन और उनके योगदान को व्यापक रूप से प्रस्तुत करके एक मूल्यवान कार्य किया है, जिससे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के गुमनाम नायकों के बारे में हमारी समझ और अधिक समृद्ध होती है। यह पुस्तक निश्चित रूप से उन सभी के लिए पठनीय है जो भारतीय इतिहास और विशेष रूप से महिलाओं के योगदान को गहराई से समझना चाहते हैं।

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