काकोरी ट्रेन एक्शन शताब्दी समारोह: 19वें अयोध्या फिल्म महोत्सव का ऐतिहासिक समापन
लखनऊ, 08 अगस्त 2025।
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग और महुआ डाबर संग्रहालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय काकोरी ट्रेन एक्शन शताब्दी समारोह का समापन ऐतिहासिक और भावनात्मक दोनों दृष्टियों से बेहद खास रहा, इस आयोजन के माध्यम से न सिर्फ 100 साल पहले घटित काकोरी एक्शन के क्रांतिकारी क्षणों को याद किया गया, बल्कि युवाओं को उस गौरवशाली संघर्ष से जोड़ने का भी प्रयास किया गया।
समारोह के अंतर्गत आयोजित विशेषांक विमोचन में जनमानस न्यूज़ के “काकोरी शताब्दी वर्ष विशेषांक” का लोकार्पण किया गया, जिसमें काकोरी केस से जुड़े दस्तावेज, क्रांतिवीरों की जीवनी, गिरफ़्तारियाँ, मुकदमे की कार्यवाहियाँ और सज़ाओं का गहन विवरण प्रकाशित किया गया है। यह अंक एक प्रकार से काकोरी के षड़यंत्र केस का जीवंत दस्तावेज है। जनमानस न्यूज़ के संपादकीय निदेशक प्रखर श्रीवास्तव ने कहा ‘आवाम सिनेमा, महुआ डाबर संग्रहालय, अम्बेडकर विश्वविद्यालय व अयोध्या फिल्म फेस्टिवल ने संयुक्त रूप से काकोरी के क्रांतिवीरों को याद करने की पहल को जो अंतराष्ट्रीय रूप दिया है, वो दुर्लभ है| 9 अगस्त 2024 को लखनऊ प्रेस क्लब में काकोरी की याद में साल भर कार्यक्रम आयोजित करने के शाह आलम की घोषणा से बुनियादी तौर पर मैं जुड़ा रहा’
प्रदर्शनी में इतिहास को साकार रूप मिला
इस आयोजन में एक विशेष प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसमें काकोरी केस से जुड़े दुर्लभ दस्तावेज, चित्र, पोस्टर, किताबें और अख़बारों की कटिंग्स प्रदर्शित की गईं। इन सामग्रियों ने आज़ादी के दीवानों की कुर्बानी को एक बार फिर लोगों के सामने जीवंत कर दिया। प्रदर्शनी को देखने आए छात्रों, शोधकर्ताओं और आम नागरिकों ने माना कि उन्होंने पहली बार इतने विस्तार से काकोरी केस को देखा और समझा।
फिल्मों का रंग और संवाद की महक
इस आयोजन के अंतर्गत अयोध्या फिल्म महोत्सव के अंतर्गत देश-विदेश की चुनिंदा फिल्मों की स्क्रीनिंग की गई। इसके बाद दर्शकों को संबंधित फिल्मकारों से बातचीत करने का अवसर भी मिला। इन फिल्मों में ऐतिहासिक, सामाजिक और मानवीय पहलुओं को बेहद संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया गया।
मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति अनिल वर्मा का संबोधन
समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने कहा कि काकोरी जैसी घटनाएँ इतिहास के पन्नों में बंद न रहें, बल्कि नई पीढ़ी के मन और मस्तिष्क में जीवंत रहें, यही इस आयोजन का असली उद्देश्य है। उन्होंने कहा काकोरी केस के क्रांतिवीरों को दी गईं सजाएं, मानवीय यातनाओं की बर्बरता को प्रदर्शित करती हैं| उन्होंने अपने दादा स्वर्गीय श्री मोतीलाल वर्मा को याद करते हुए बताया कि वे स्वयं स्वतंत्रता सेनानी रहे थे और उन्होंने बचपन से ही आज़ादी की कहानियाँ सुनीं। न्यायमूर्ति वर्मा स्वयं भी इतिहास और संस्कृति पर केंद्रित कई किताबें लिख चुके हैं।
उपस्थित गणमान्य अतिथि
समारोह में पूर्व सूचना आयुक्त किरणबाला चौधरी, काकोरी ट्रेन एक्शन के महानायक शचीन्द्र नाथ बक्शी की पौत्रि मीता बक्शी, डीन एकैडमिक अफेयर प्रो. एस. विक्टर बाबू, इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. वी.एम. रवि कुमार, महुआ डाबर संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. शाह आलम राना, फेस्टिवल ज्यूरी चेयरमैन प्रोफेसर मोहनदास ने सम्बोधित किया आयोजन के समन्वयक डॉ. सुदर्शन चक्रधारी ने संचालन किया किया।
पुरस्कारों में विविधता और गुणवत्ता
फिल्म फेस्टिवल के दौरान अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय फिल्मों को विभिन्न श्रेणियों में पुरस्कृत किया गया। “बिरयानी”, “ड्रैगन हार्ट”, “आरव”, “खादिमा”, “द किंग ऑन द बॉर्डर”, “कुर्सी”, “क्लोज”, “डील से डिवोर्स” जैसी फिल्मों ने दर्शकों को गहराई से छुआ।
“बिरयानी” ने मोह और माता-पिता के शोक को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया।
“आरव” एक नेत्रहीन युवक द्वारा विकसित तकनीक की प्रेरक कहानी है।
“ड्रैगन हार्ट” आत्मा की दुनिया की यात्रा पर आधारित एनीमेशन फिल्म है।
“खादीमा” विदेशों में शोषण झेल रहे केयरगिवर्स की सच्ची तस्वीर सामने लाती है।
“द किंग ऑन द बॉर्डर” ने सीमावर्ती गांवों की दोहरी ज़िंदगी को उजागर किया।
मुख्य पुरस्कार विजेता फिल्में और कलाकार
सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म: The Fifth Age
सर्वश्रेष्ठ भारतीय फीचर फिल्म: Oka Manchi Prema Katha
सर्वश्रेष्ठ महिला सशक्तिकरण फिल्म: Ladegi Meghaa
सर्वश्रेष्ठ शॉर्ट फिल्म: Knot
सर्वश्रेष्ठ सामाजिक संदेश वाली फिल्म: Ansuni Cheekhein
सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री: सीमा बिस्वास
सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता: यशपाल शर्मा
सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (जूरी): राम कमल मुखर्जी
कार्यक्रम के अंत में विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले छात्रों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए, उनके चेहरे पर गर्व और प्रेरणा की चमक स्पष्ट दिख रही थी। इस तरह यह आयोजन केवल एक ऐतिहासिक स्मरण नहीं रहा, बल्कि एक ऐसा जीवंत मंच बना, जहाँ इतिहास, सिनेमा, संवाद, शिक्षा और संवेदना का संगम दिखा। कार्यक्रम मे डॉ• राजेश कुमार, डॉ• आनंद सिंह, ड़ॉ• सिद्धार्थ शंकर राय, अरविन्द सिंह राणा, शाह अयाज़ सिद्दीकी, एस मजूमदार, जी पी सिन्हा, प्रखर श्रीवास्तव, अरविन्द सिंह राणा आदि मौजूद रहे.