लेखक :- शुभम त्रिपाठी
शोध छात्र – इतिहास विभाग,
लखनऊ विश्वविद्यालय
‘काकोरी डकैती’
लेखक : मौलाना हसरत मौलवी फाजिल लखनवी
सम्पादन : अनूप शुक्ल , प्रखर श्रीवास्तव
प्रकाशन : कानपुर इतिहास समिति
कीमत : 100 रूपए
मौलाना हसरत मौलवी फाजिल लखनवी द्वारा लिखित और 1926 में प्रकाशित पुस्तिक “काकोरी डकैती” ब्रिटिश हुकूमत को हिला देने वाली प्रसिद्ध काकोरी घटना का एक समकालीन और अत्यंत महत्वपूर्ण दस्तावेज़ीकरण है। यह पुस्तक केवल एक ऐतिहासिक घटना का विवरण नहीं है, बल्कि उस दौर के सामाजिक, राजनीतिक और भावनात्मक माहौल का एक जीवंत और बहुआयामी चित्रण भी है। यह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के क्रांतिकारियों द्वारा किए गए साहसी कृत्य की कहानी को उसके तत्काल बाद के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करती है। इसका भावानुवाद, उर्दू से हिन्दी भाषा में हिन्दी पाठकों को लाभान्वित करने के लिए किया गया है| लगभग एक सदी पुराने इस महत्वपूर्ण दस्तावेज़ को पुनर्जीवित करना एक सराहनीय और आवश्यक प्रयास है।
पुस्तक की अनूठी संरचना इसे विशेष बनाती है। इसकी शुरुआत एक उपन्यास की शैली में होती है, जो एक नवविवाहित जोड़े की मार्मिक प्रेम कहानी और उनके आस-पास के घरेलू माहौल का सुंदर चित्रण करती है। यह व्यक्तिगत कहानी उस ट्रेन यात्रा से जुड़ती है जिसमें डकैती की घटना घटित होती है, और इस तरह यह ऐतिहासिक घटना को मानवीय भावनाओं से तुरंत जोड़ देती है। यह शैलीगत प्रयोग, जैसा कि संपादक ने भी अनुमान लगाया है, संभवतः पाठकों को एक गंभीर विषय से भावनात्मक रूप से जोड़ने के लिए किया गया है।
कुछ पन्नों के बाद, लेखन शैली एक कुशल रिपोर्टर की तरह हो जाती है, जहाँ लेखक सिलसिलेवार ढंग से घटनाओं, 10 महीने तक चली अदालती कार्यवाहियों, देश भर से हुई गिरफ्तारियों और उस समय के समाचार पत्रों की प्रतिक्रियाओं का विस्तृत ब्यौरा देते हैं। यह मिश्रण, जिसमें कहानी और यथार्थ का अद्भुत संगम है, पुस्तक को अनूठा बनाता है और पाठक को अंत तक बांधे रखता है।
पुस्तक का मुख्य केंद्र बिंदु 9 अगस्त 1925 को काकोरी के पास हुई ट्रेन डकैती की घटना है, जिसका उद्देश्य अंग्रेजी खजाने को लूटकर स्वतंत्रता संग्राम के लिए धन और हथियार जुटाना था। लेखक ने इस घटना से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी को बड़ी बारीकी से पिरोया है।
पुस्तक में चली लंबी अदालती कार्यवाही की दिलचस्प बहसों का विस्तृत वर्णन है। एक वकील होने के नाते, लेखक ने कानूनी दांव-पेंच, क्रांतिकारियों के पक्ष और विपक्ष में दी गई दलीलों, और गवाहों के बयानों को बड़ी सटीकता से प्रस्तुत किया है। यह उस समय की न्यायिक प्रक्रिया पर भी प्रकाश डालता है।
लेखक ने देश के विभिन्न हिस्सों, जैसे कानपुर, बनारस, शाहजहाँपुर और बंगाल से हुई क्रांतिकारियों की गिरफ्तारियों का उल्लेख किया है। गणेश शंकर विद्यार्थी के ‘प्रताप प्रेस’ से जुड़े सुरेशचंद्र भट्टाचार्य जैसे व्यक्तियों की भूमिका को भी उजागर किया गया है। पुस्तक में तत्कालीन समाचार पत्रों, जैसे ‘हमदम’ की रिपोर्टों को शब्दशः शामिल किया गया है, जिससे यह पता चलता है कि उस समय मीडिया और आम जनता इस घटना को किस तरह से देख रही थी। यह रिपोर्टें प्राथमिक स्रोत के रूप में काम करती हैं और घटना को एक प्रामाणिक परिप्रेक्ष्य प्रदान करती हैं।
पुस्तक में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, मनमथ नाथ गुप्ता और अन्य क्रांतिकारियों का ज़िक्र है। उनके साहस, दृढ़ संकल्प, देश के प्रति उनके प्रेम और अदालत में उनके निर्भीक व्यवहार का चित्रण पाठक के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ता है।
लेखक, मौलाना हसरत मौलवी फाजिल लखनवी, जो स्वयं लखनऊ में एक अधिवक्ता थे, का इस घटना से गहरा भावनात्मक जुड़ाव महसूस होता है। उनकी लेखन शैली से यह स्पष्ट है कि वे एक अमन-पसंद और वतन से मोहब्बत करने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने तथ्यों को जस का तस प्रस्तुत करने का प्रयास किया है और अपनी ओर से कोई सीधी टिप्पणी देने से बचे हैं। उनका उद्देश्य केवल उस समय के घटनाक्रम को पाठकों के लिए लिपिबद्ध करना था, और इस कार्य में वे पूरी तरह सफल हुए हैं। उनका कानूनी ज्ञान उनके लेखन में स्पष्ट झलकता है, जिससे घटनाओं का विश्लेषण अधिक विश्वसनीय हो जाता है।
“काकोरी डकैती” सिर्फ एक पुस्तक नहीं, बल्कि इतिहास का एक अमूल्य पन्ना है। यह हमें काकोरी कांड की घटना को उसके समकालीन परिप्रेक्ष्य में, बिना किसी बाद के विश्लेषण के रंग के, देखने का अवसर प्रदान करती है। उपन्यास और रिपोर्टिंग का मिश्रण इसे पठनीय, जानकारी पूर्ण और भावनात्मक रूप से प्रभावशाली बनाता है। लेखक ने जिस तरह से घटनाओं को सिलसिलेवार ढंग से और समाचार पत्रों के उद्धरणों के साथ प्रस्तुत किया है, वह इसकी प्रामाणिकता को बढ़ाता है।
यह पुस्तक उन सभी के लिए अनिवार्य रूप से पठनीय है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, विशेषकर काकोरी केस और क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में गहराई से जानना चाहते हैं। यह हमें उन गुमनाम नायकों के बलिदान और साहस की याद दिलाती है जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।