Saturday, September 13, 2025

क्रांतिकारी की शहादत का अपमान: ‘शिव वर्मा पार्क’ की दुर्दशा

प्रखर श्रीवास्तव 

स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य श्री शिव वर्मा का निधन 10 जनवरी 1997 को उनकी कर्म भूमि रहे शहर कानपुर में ही हुआ था, जिस दौरान उनके निवास पर देश के बड़े राजनेता, कई समाजसेवी, लेखक, साहित्यकार व पत्रकार उनको श्रद्धांजलि देने आए थे| उनके निवास के सामने मौजूद पार्क का नाम ‘क्रांतिवीर शिव वर्मा पार्क’ रखा गया था, जहाँ लंबे समय से उनकी स्मृति में उनके भतीजे श्री योगेंद्र वर्मा जी के द्वारा कार्यक्रम होते थे, आज इस पार्क की दशा दयनीय है|

आवास विकास 1, कानपुर स्थित इस पार्क की विधानसभा सीट कल्याणपुर है तो वहीं लोकसभा सीट अकबरपुर है मगर राजनेताओं ने शिव वर्मा जी की स्मृति को आज भुला दिया है, पार्क खंडहर व जंगल जैसा प्रतीत होता है जहाँ इंसानों का प्रवेश असम्भव है|

शिव वर्मा प्रख्यात भारतीय क्रांतिकारियों में से एक हैं, सरदार भगत सिंह के नजदीकी रहे अहम लोगों में से प्रमुख शिव वर्मा पुस्तक ”संस्मृतियाँ” के लेखक हैं, जो क्रांति इतिहास का महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित हुआ व कई भाषाओं में कई बार प्रकाशित हुआ|

बोला मोहल्ला

क्षेत्रीय निवासी सेवानिवृत्ति पूर्व असिस्टेंट कमिश्नर ओ•पी• श्रीवास्तव ने कहा ‘मैंने शिव दा को देखा है, वे काफी अच्छे व्यक्ति थे खराब लगता है कि उनकी कर्मभूमि में बने इकलौते स्मारक कि यह दुर्दशा है|’ अधिवक्ता सुधीर सिंह ने कहा ‘जबकि कॉलोनी के बाकि सब पार्क ठीक हैं, बस इस पर ही किसी कि नज़र नहीं जा रही… मेरे परिवार द्वारा क्षेत्रीय लोगों से मिलकर प्रशासन को अवगत कराया गया था मगर कुछ हुआ नहीं, ऐसे महान क्रांतिवीर के नाम पर बनाए गए पार्क की स्थिति दयनीय है|’ तो वहीं वरिष्ठ नागरिक उषा कनौजिया ने कहा ‘क्षेत्रीय विधायक और सांसद कई बार आकर देख चुके हैं पर कुछ हुआ नहीं, मोहल्ले के हम कुछ परिवार तकरीबन 4 – 5 साल तक निजी रुपयों से इस पार्क की देखभाल करते रहे मगर अब स्थिति यह है कि वहाँ सिर्फ जानवर बैठ सकते हैं इंसान नहीं, देश की आजादी के नायक की याद में बने पार्क की दुर्दशा उनका अपमान ही है|’

झलका परिवार का दर्द

क्रांतिवीर शिव वर्मा की पुत्रवधु कृष्णा वर्मा ने कहा कि कानपुर आवास विकास द्वारा आवंटित घर में जब शिव वर्मा रहने आए, उसके बाद शिव वर्मा पार्क बनाया गया जो की आज जंगल में तब्दील हो चुका है| शिव दा के बच्चे तो कोई थे नहीं, मैं ही बची पारिवारिक सदस्य हुँ, मैं चाहती हुँ उनकी कोई निशानी तो हो, उनका नाम लेने वाला भी तो कोई रहे…

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