अंबिकेश द्विवेदी
भारत में अगर कहीं 37 साल तक कोई एफ.आई.आर. न दर्ज हो, तो या तो वहाँ के लोग महान संत होंगे या फिर पुलिस स्टेशन के बाहर “कृपया परेशान न करें, हम नींद में हैं” का बोर्ड टंगा होगा. देश से लेकर विदेश तक जब पूरी दुनिया में अपराध चरम पर है दुनिया में जहाँ चारों तरफ बस लड़ाई,झगड़े, मारपीट की खबरों से, अखबार से लेकर सब चैनल सने रहते हों, आए दिन जुर्म करने के नए तरीके इज़ात किए जा रहे हों और रामराज्य नेताओं के लिए चुनावी जुमला और समाज के लिए बस एक आदर्शवादी वाक्य बन कर रह गया हो, तब उत्तर प्रदेश के शहाजहांपुर जिले का एक गाँव मिसाल बनकर सामने आया है, जहाँ पिछले 37 वर्षों में एक भी एफ.आई.आर. दर्ज नहीं हुई… यह कहानी सिर्फ आंकड़ों की नहीं है, बल्कि वहाँ के लोगों की सोच, सामाजिक बंधनों और मानवीय रिश्तों की भी है… यूपी जो आए दिन क्राइम के लिए देश के अखबारों की फ्रंट लाइन पर रहता है, उस प्रदेश से ये खबर पूरे समाज के लिए एक आईना है|
37 वर्षों से नहीं दर्ज हुई कोई एफआईआर
नियामतपुर ग्राम पंचायत की आबादी लगभग 1400 है.. गाँव में मजरा गाँव बिजलीखेड़ा और नगरिया बहाव भी शामिल हैं 1988 से अब तक गाँव से कोई भी शिकायत थाने में नहीं गई है| ये कहना अतिशियोक्ति नही होगी कि थाने के रिकॉर्ड रजिस्टर पर अब धूल की मोटी परत जम गई होगी|
और कुछ शहरी लोगों को शक है कि यहाँ इंटरनेट नहीं होगा, इसलिए सोशल मीडिया पर गाली-गलौज की जगह लोग खेतों में हल चला रहे होंगे, और सच कहें तो यही फर्क है जहाँ बाकी दुनिया डिजिटल दुश्मनी में लगी है, वहाँ यह गाँव असल में रिश्तों को संभालने में व्यस्त है..वहीं यहाँ की महिलाएं गाँव की असली “डाटा प्रोटेक्टर” हैं.. यहाँ की महिलाओं का गुप्त मंत्र ही शांति का पासवर्ड है|
एक बार पुलिस आई, लेकिन लौट गई
नियामतपुर गाँव की शांति और समझदारी की एक मिसाल तब देखने को मिली, जब एक बार एक परिवार के रिश्तेदारों के बीच गंभीर विवाद हो गया..इस दौरान किसी ने पुलिस को बुला लिया, लेकिन ग्राम प्रधान ने तुरंत हस्तक्षेप किया, उन्होंने पुलिस को वापस भेज दिया और परिवार को समझा-बुझाकर मामले को सुलझा लिया | इस घटना ने गाँव की इस अनोखी परंपरा को और मजबूत किया, जिसमें बाहरी हस्तक्षेप के बिना ही समस्याओं का समाधान किया जाता है| यह दर्शाता है कि नियामतपुर के लोग अपनी एकता और बुद्धिमानी पर कितना भरोसा करते हैं|
एक ही परिवार की चलती है पंचायत
इस गांव में पिछले 35 साल से एक ही परिवार पंचायत जीतता आ रहा है.. पिछले 35 साल से इस गांव में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष वीरेंद्र पाल सिंह यादव का परिवार ही पंचायत चुनाव जीत रहा है… एक के बाद एक पीढ़ियां इस चुनाव को जीत यहाँ सरपंच बन रही है|
ऐसे आया रामराज्य
वीरेंद्र पाल सिंह यादव के मुताबिक़, वो 1988 में यहाँ निर्विरोध ग्राम प्रधान बने थे, इसके बाद उन्होंने ठान लिया था कि वो अपने अंदर किसी क्राइम को होने नहीं देंगे| रामराज्य स्थापित करने में गाँव वालों का योगदान भी वीरेंद्र पाल नहीं भूल सकते अगर कोई समस्या होती है तो वो पंचायत के सामने शिकायत करते हैं| सारा मामला जानने के बाद सरपंच दोनों पक्षों की सुलह कराता है और मामला खत्म हो जाता है|
विकास और शांति का अनूठा संगम
जहाँ कानून कागज़ों से नहीं, इंसानों के दिलों से चलता है| विवादों का हल दुश्मनी से नहीं, दोस्ती से निकलता है| यह गाँव इस बात का जीता-जागता प्रमाण है कि अगर समाज ठान ले, तो शांति और भाईचारे के साथ जिंदगी जीना संभव है| बिना एफ.आई.आर. बिना पुलिस, और बिना अदालत के नियामतपुर गाँव सिर्फ शांति और भाईचारे के लिए ही नहीं, बल्कि विकास के क्षेत्र में भी आगे बढ़ रहा है| यह गाँव न केवल अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझाने में सक्षम है, बल्कि यह सामुदायिक एकता और परंपराओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है| 212 घरों वाला यह गाँव (2011 की जनगणना के अनुसार) न केवल अपने विवाद सुलझाने की अनूठी प्रथा के लिए जाना जाता है, बल्कि यह अन्य गांवों के लिए भी एक मिसाल है| यह गाँव साबित करता है कि आपसी विश्वास और सहयोग से हर चुनौती को पार किया जा सकता है|