Wednesday, October 22, 2025

न्याय, ज्ञान और लेखन के अधिष्ठाता देव श्री चित्रगुप्त जी

– आकृति श्रीवास्तव , लेखिका 

भारतीय संस्कृति में देवताओं की अनेकों मूर्तियाँ हैं — कोई सृष्टि का कर्ता है, कोई पालनकर्ता और कोई संहारक। परंतु कर्म का लेखा जोखा रखने वाला देवता केवल एक है — “चित्रगुप्त जी।” वे न केवल न्याय और धर्म के प्रतीक हैं, बल्कि ज्ञान, लेखन और विवेक के आद्य प्रवर्तक भी माने गए हैं।

चित्रगुप्त जी की दिव्य उत्पत्ति
स्कंद पुराण, पद्म पुराण, भविष्य पुराण और ब्रह्म पुराण जैसे अनेक ग्रंथों में चित्रगुप्त जी की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है। कहा गया है कि जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि का विस्तार किया, तुम उनके अंग से 16 अवतार है जिनमें से एक चित्रगुप्त महाराज है इनका अवतार तब हुआ जब उन्हें ऐसे एक दिव्य अस्तित्व की आवश्यकता हुई जो प्राणियों के कर्मों का लेखा रख सके। तब उन्होंने अपने चित्त (मन) से एक तेजस्वी पुरुष का निर्माण किया — वही चित्रगुप्त कहलाए। चूंकि वे ब्रह्मा के चित्र (मन) में गुप्त रूप से विद्यमान थे, अतः उनका नाम चित्रगुप्त पड़ा। और काया से उत्पन्न होने पर ब्रह्मा ने उन्हें क्षत्रिय तेज और ब्राह्मण ज्ञान दोनों से संपन्न बनाया, जिससे वे कायस्थ कुल  चलने का आशीर्वाद मिला।

स्वरूप और कार्य
चित्रगुप्त जी चारों वेद, छह शास्त्र और अठारह पुराणों के ज्ञाता हैं। चार वर्ण के कर्म को करने वाले अंतर्यामी, सर्वकालिक स्वतंत्र और सत्यवादी बने। वे धर्मराज यमराज के सहायक हैं और 84 लाख योनि के जीवों के शुभ-अशुभ कर्मों का लेखा रखते हैं।उनका न्याय निष्पक्ष और सर्वज्ञ तथा सर्वमान्य होता है। इसी कारण उन्हें कर्मफल दाता का भी दर्जा प्राप्त है। सृष्टि के कल्याण हेतु उन्होंने कोट नगर में चंडी देवी की उपासना की और शिप्रा नदी के तट पर तपस्या पूर्ण कर धर्मकार्य का भार संभाला।

जन्म, ग्रह योग और गुण
चित्रगुप्त जी का जन्म कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन हुआ, जिसे आज भी चित्रगुप्त जयंती के रूप में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। तथा इस दिन कायस्थ कुल  में कलम दवात की पूजा की जाती है| भृगु ऋषि के अनुसार उनकी कुंडली मिथुन लग्न की थी।

सप्तम भाव में केतु और लग्न पर सभी ग्रहों की दृष्टि थी — इस कारण उनके दो विवाह और बारह पुत्रों का योग बनता है। उनकी राशि धनु मानी गई, जिसके स्वामी बृहस्पति हैं। नवग्रहों से प्राप्त आशीर्वाद ने उन्हें विद्या, विवेक, वाणी, साहस और सौभाग्य से संपन्न किया। उनकी हस्त रेखा में अमरविद्या अपार सात्विक वृद्धि के साथ तान्त्रिक ज्ञान की भी प्राप्ति वर्णन था|

विवाह और गृहस्थ जीवन
चित्रगुप्त जी के दो विवाह हुए —
1. शोभावती (इरावती) – प्रथम पत्नी, जो प्रत्येक प्राणी के स्वभाव को समझने में सहायक थीं।
2. नंदिनी (सांगदेव की पुत्री) – द्वितीय पत्नी, जो मृत्यु लोक के जीवों की श्वास गणना में उनकी सहायक बनीं।
इन दोनों विवाहों से उन्हें कुल बारह पुत्र प्राप्त हुए

लेखन कला के प्रवर्तक
चित्रगुप्त जी को लेखन विद्या का जनक कहा जाता है। उन्होंने धर्मकार्य के संचालन हेतु लेखन की पद्धति का आविष्कार किया। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, नगरकोट के खंडहरों से प्राप्त प्राचीन सिक्कों पर अंकित अक्षर देवनागरी लिपि के प्रारंभिक स्वरूप माने जाते हैं — जो उनकी विद्या का मूर्त प्रमाण हैं।

कायस्थ वंश की महत्ता
इन बारह पुत्रों से उत्पन्न शाखाओं ने भारतीय समाज में शिक्षा, न्याय, नीति और प्रशासन के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। समय के साथ उनके वंशजों ने अनेक उपनाम धारण किए — श्रीवास्तव, माथुर, गौड़, निगम, अस्थाना, कुलश्रेष्ठ, सूर्यध्वज, भटनागर, अम्बष्ठ, सक्सेना, कर्ण और वाल्मीकि। ये सभी शाखाएँ आज भी अपने पूर्वजों के लेखन, विद्या और न्याय के आदर्श का पालन करती हैं।

निष्कर्ष
चित्रगुप्त जी केवल धर्मराज के सचिव नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के पहले लेखाकार, इतिहासकार और न्यायाधीश हैं।उन्होंने यह सिखाया कि कर्म ही मनुष्य का वास्तविक परिचय है, और हर कर्म का अंकन ब्रह्मांड के न्याय में होता है।उनकी वंश परंपरा आज भी भारतीय समाज में शिक्षा, विद्या, न्याय और सत्य के संरक्षण का प्रतीक बनी हुई है।

कायस्थ समुदाय इस गौरवशाली विरासत का संवाहक है — जहाँ कलम ही अस्त्र है और सत्य ही धर्म।

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