कानपुर का नाम कान्हापुर या कान्हपुर रखा जाए यह मांग गत वर्षों की भांति फिर से कानपुर इतिहास समिति ने दोहराई है कानपुर इतिहास समिति द्वारा कन्हैयाष्टमी को कानपुर स्थापना दिवस 2A/153 आजादनगर कानपुर में मनाया गया। कानपुर का नाम कान्हपुर करने और स्थानीय इतिहास को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग कानपुर इतिहास समिति के महासचिव अनूप शुक्ल ने की, उन्होंने कहा कि कानपुर चाहे राजा कान्हदेव द्वारा 700 वर्ष पूर्व स्थापित हो या सचेंडी के राजा हिन्दू सिंह द्वारा लेकिन स्थापना कन्हैयाष्टमी को ही की गई थी जो आज जिला व शहर के रूप मे लब्धप्रतिष्ठ है।
कार्यक्रम का आगाज पॉडकास्ट ‘हेरिटेज टॉक विद अनूप शुक्ला’ से हुआ। अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए डॉ ऊषा भार्गव जी ने कहा कि कानपुर की स्थापना संचेडी के चंदेल राजा हिन्दू सिंह द्वारा की गई हो अथवा राजा कान्हदेव संस्थापक हों लेकिन नामकरण में भगवान श्री कृष्ण जी का कान्हा नाम ही है। डॉ० सुमन शुक्ला बाजपेई ने कहा कि कानपुर का पहला इतिहास 1875 में लाला दरगाहीलाल वकील ने प्रकाशित कराया। लाला दरगाहीलाल वकील की किताब तवारीख-ए-जिला कानपुर के हिस्सा अव्वल में राजा हिन्दू सिंह द्वारा कानपुर की स्थापना का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। मुख्य अतिथि उपनिदेशक युवा कल्याण अजय त्रिवेदी ने स्थानीय इतिहास की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि क्षेत्रीय इतिहास पर शोध और लेखन बहुत आवश्यक है, कानपुर जिले की स्थापना और कानपुर की स्थापना दोनों को अलग-अलग कर लिखा जाना चाहिए। धर्मप्रकाश गुप्त ने कहा कि भीतरगांव, निबियाखेड़ा, बेहटा मन्दिर को विश्व विरासत सूची में शामिल किया जाना चाहिए। महेश शर्मा ने कहा कि स्थानीय इतिहास और स्थापना तिथि निर्धारण के लिए उच्च शिक्षा के लोगों को अन्वेषण करना चाहिए। देवांशु पाण्डेय ने कहा कि पांचाल क्षेत्र में अवस्थित कानपुर के मंदिरों एवं स्मारकों के इतिहास का अध्ययन और नई पीढ़ी को रूबरू कराना आवश्यक है। शुभम् त्रिपाठी ने कहा कि युग युगीन कानपुर को विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में स्थानीय इतिहास के अध्ययन में शामिल किया जाये। विनोद टंडन ने कहा कि प्राचीन मंदिरों, घाटों पर लैंडमेकर लगा कर इतिहास बोध कराने वाले पट्ट शीघ्र नगर निगम के सहयोग से लगाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि पुराना कानपुर में महलवा के पास से शुरू किया जा सकता है। हर्षित सिंह ने कहा कि कानपुर इतिहास के प्रकाशन और प्रोत्साहन मे मै सदैव साथ हूँ।
धन्यवाद ज्ञापन प्रमोद कुमार टंडन ने किया। संगोष्ठी में अजय त्रिवेदी,अनूप शुक्ल, विश्वंभर त्रिपाठी, विनोद टंडन, डॉ सुमन शुक्ला बाजपेई, डॉ ऊषा भार्गव, पूनम त्रिवेदी, डॉ नीलम शुक्ला, धर्म प्रकाश गुप्त, महेश शर्मा,हर्षित सिंह, शुभम् त्रिपाठी देवांशु पाण्डेय, स्मृति टंडन रेखा टंडन,सर्वेश तिवारी, सात्विक त्रिपाठी, आशीष मिश्रा, अंकित गुप्त, अजय पाण्डेय आदि उपस्थित रहे।