अंकित अवस्थी
भारत आज ऊर्जा संक्रमण के मोड़ पर खड़ा है। सरकार ने प्रदूषण कम करने और तेल आयात घटाने के लिए दो बड़ी रणनीतियाँ अपनाई हैं—एक ओर पेट्रोल में 20% ईथेनॉल मिलाना (E20), और दूसरी ओर इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को बढ़ावा देना। दोनों ही कदम सतह पर “हरित भविष्य” की ओर बढ़ते दिखते हैं। लेकिन जब परतें हटाते हैं तो पता चलता है कि इन नीतियों में ऐसे छेद भी हैं जो हमारी खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण और आर्थिक स्वावलंबन को गहरे संकट में डाल सकते हैं।
ई20 का सच : मीठे सपने, कड़वी हकीकत
पानी और पर्यावरण पर बोझ :- ईथेनॉल का सबसे बड़ा स्रोत भारत में गन्ना है। लेकिन गन्ना वह फसल है जो पानी को निगल जाती है। एक लीटर ईथेनॉल तैयार करने में कई लीटर पानी खर्च होता है। यह उस देश में किया जा रहा है जहाँ पहले से ही कई राज्य—जैसे महाराष्ट्र और कर्नाटक—सूखे और भूजल संकट से जूझ रहे हैं। इसके अलावा डिस्टिलरी से निकलने वाला कचरा (विनास) नदियों और भूजल को दूषित करता है। यानी हरित ऊर्जा की राह पर चलते-चलते हम पर्यावरण को नए खतरे दे रहे हैं।
अनाज बनाम ईंधन का टकराव
भारत जैसे देश में जहाँ अब भी लाखों लोग गरीबी और कुपोषण से जूझ रहे हैं, वहाँ मक्का और चावल जैसी खाद्य फसलों को ईंधन बनाने में झोंकना खतरनाक है। अगर मक्का का बड़ा हिस्सा ईथेनॉल उत्पादन में जाएगा तो इसका असर पोल्ट्री, पशु आहार और सीधा जनता की थाली पर पड़ेगा। कीमतें बढ़ेंगी और खाद्य सुरक्षा खतरे में आ सकती है।
उपभोक्ता की जेब पर चोट
सरकार कहती है कि ईथेनॉल मिलाने से विदेशी तेल आयात घटेगा और किसान लाभान्वित होंगे। लेकिन उपभोक्ता के नजरिए से तस्वीर धुंधली है। ई20 पेट्रोल से वाहनों की माइलेज घट रही है, इंजन पर असर पड़ रहा है और फिर भी पंप पर कीमतें कम नहीं हुईं। कई कार मालिकों ने 10–20% तक औसत गिरने की शिकायत दर्ज कराई है।
न्यायिक विवाद
मामला इतना गंभीर हो चुका है कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल हुई। याचिका में कहा गया कि बिना इंजन मॉडिफिकेशन के जबरन ई20 थोपना उपभोक्ताओं के अधिकारों और सुरक्षा दोनों के खिलाफ है।
इलेक्ट्रिक वाहन—भविष्य या नया जाल ?
EVs को लेकर भारत में जबर्दस्त प्रचार है। लेकिन आज भी चार्जिंग स्टेशन शहरों के बाहर लगभग न के बराबर हैं। इसके अलावा चार्जिंग के लिए जो बिजली चाहिए, उसका बड़ा हिस्सा कोयले से आता है। यानी EV से निकलने वाला प्रदूषण भले न दिखे, लेकिन पावर प्लांट पर बोझ बढ़ता है और उत्सर्जन वहीं से जारी रहता है।
कीमत और पहुँच
EV आज भी आम भारतीय की पहुंच से बाहर है। बैटरी महंगी हैं, सब्सिडी सीमित है और देश में लिथियम या कोबाल्ट जैसी धातुएँ खुद नहीं मिलतीं। नतीजा यह कि उत्पादन लागत चीन से आयात पर निर्भर है। चीन की पकड़ असली खतरा है। दुनिया की 75–80% बैटरी चीन बनाता है। लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ धातुओं पर उसका नियंत्रण है। BYD और CATL जैसी कंपनियाँ बेहद सस्ते और टिकाऊ मॉडल बनाकर वैश्विक बाजार पर कब्ज़ा कर रही हैं।
अगर भारत अपनी EV यात्रा चीन की बैटरियों और तकनीक पर टिका देगा, तो भविष्य में हमारी ऊर्जा सुरक्षा बीजिंग की मेहरबानी पर होगी। हाल ही में चीन ने दुर्लभ पृथ्वी धातुओं के निर्यात पर नियंत्रण कड़ा किया है—यह हमारे लिए सीधा खतरे का संकेत है।
घरेलू सुरक्षा और नीति
भारत ने BYD जैसी चीनी कंपनियों को यहाँ बड़े निवेश की अनुमति नहीं दी। वजह स्पष्ट है—हमारी आत्मनिर्भरता और डेटा सुरक्षा पर खतरा। लेकिन इस निर्णय के साथ एक सवाल खड़ा होता है: क्या भारत खुद समय रहते मजबूत बैटरी और EV इकोसिस्टम खड़ा कर पाएगा ?
समाधान की राह—नीति, नवाचार और संतुलन
ईथेनॉल के लिए केवल गन्ने और खाद्य अनाज पर निर्भर रहने के बजाय तीसरी पीढ़ी (3G) ईथेनॉल यानी कचरे, बायोमास और शैवाल से ईंधन बनाने पर जोर देना होगा। किसानों को भुगतान में देरी न हो, इसके लिए सरकार को ऑफटेक गारंटी देना चाहिए। उपभोक्ता जागरूकता ज़रूरी है—फ्यूल स्टेशन पर साफ लिखा हो कि कौन सा पेट्रोल किस वाहन के लिए सुरक्षित है।
EV के लिए देश में बैटरी निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर निवेश करना होगा। चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को सौर और पवन जैसी नवीकरणीय बिजली से जोड़ना होगा। चीन पर निर्भरता घटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय साझेदारियाँ करनी होंगी—जैसे ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से धातु आपूर्ति । साथ ही, घरेलू कंपनियों को नवाचार के लिए प्रोत्साहित करना होगा ताकि BYD और Tesla जैसी कंपनियों का मुकाबला किया जा सके।
हरित भविष्य या दोहरी मुसीबत ?
भारत की ऊर्जा नीति एक दोधारी तलवार की तरह है। ई20 हो या EV, दोनों ही सही ढंग से न लागू हों तो फायदे से ज्यादा नुकसान कर सकते हैं। भारत को अब “जल्दी और ज्यादा” से बचकर “संतुलित और स्थायी” रणनीति अपनानी होगी। हरित बदलाव ज़रूरी है, लेकिन वह तभी सफल होगा जब वह आर्थिक रूप से टिकाऊ, सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण और रणनीतिक रूप से आत्मनिर्भर हो।