आज से 112 वर्ष पूर्व श्रद्धेय गणेश शंकर विद्यार्थी जी द्वारा प्रकाशित प्रताप पत्र पत्रकारिता का पर्याय था । प्रताप कांग्रेस आंदोलन के साथ साथ क्रान्तिकारियों का मसीहा पत्र था । यह विचार कानपुर इतिहास समिति द्वारा गोविन्दनगर में आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं द्वारा व्यक्त किये गये । इस अवसर पर डॉ सुमन शुक्ला बाजपेई द्वारा एक शताब्दी पुराना प्रताप का कानपुर कांग्रेस विशेषांक मूल रूप से प्रस्तुत किया गया । अध्यक्ष विश्वंभरनाथ त्रिपाठी ने कहा कि साप्ताहिक प्रताप का प्रकाशन 9 नवम्बर 1913 देवोत्थानी एकादशी को फीलखाना कनपुर से हुआ था | महासचिव अनूप कुमार शुक्ल ने कहा कि प्रताप पत्र के संस्थापक चार मित्र थे बाबू नारायणप्रसाद अरोड़ा , शिवनारायण मिश्र , यशोदानन्दन शुक्ल व गणेशशंकर विद्यार्थी | प्रताप का नामकरण नारायणप्रसाद अरोड़ा ने ब्राह्मण के संपादक प. प्रतापनारायण मिश्र की स्मृति को लेकर किया वही विद्यार्थी जी ने प्रताप को महाराणा प्रताप से जोड़ा , दोनो महापुरुषो पर दोनो ने प्रवेशांक मे लिखा भी था | प्रताप प्रेस क्रान्तिकारियों एवं कांग्रेसियों दोनों का गुरूद्वारा जैसा था।
समिति की उपाध्यक्ष डॉ सुमन शुक्ला बाजपेई ने कहा “कानपुर कांग्रेस” शताब्दी वर्ष अनुसन्धान कार्य में श्रद्धेय गणेशशंकर विद्यार्थी जी द्वारा प्रकाशित प्रताप पत्र का विशेषांक मूल रूप से एक निजी संग्रह से प्राप्त हुआ है । शताब्दी पूर्ण कर चुके 80 पृष्ठीय प्रताप पत्र के कानपुर कांग्रेस विशेषांक को कानपुर इतिहास समिति शीघ्र ही पुनः प्रकाशित करेगा । डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रताप पत्र अपनी राष्ट्रीय विचारधारा और तेजस्वी लेखनी के साथ क्रान्तिकारियों को भी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करता था । इतिहासविद शुभम त्रिपाठी ने कहा कि सरकार को प्रताप प्रेस भवन को संरक्षित कर उसमें पत्रकारिता संग्रहालय बनाया जाना चाहिए।
डी बी एस कॉलेज की डॉ नीलम शुक्ला ने कहा कि प्रताप पत्र को ठीक से संचालित करने के लिए एक पांच सदस्यीय ट्रस्ट का गठन 15 मार्च 1919 को किया गया | ट्रस्ट मे मैथलीशरण गुप्त, डा. जवाहरलाल रोहतगी, लाला फूलचन्द जैन, शिवनारायण मिश्र , गणेशशंकर विद्यार्थी थे | कार्यक्रम में विश्वंभरनाथ त्रिपाठी, अनूप कुमार शुक्ल, डॉ सुमन शुक्ला बाजपेई, शुभम त्रिपाठी, डॉ जितेन्द्र सिंह, डॉ नीलम शुक्ला, हर्षित सिंह आदि मौजूद रहे ।




