टमाटर के बाद अब प्याज की बढ़ती क़ीमतों ने आम लोगों के साथ-साथ केंद्र सरकार की चिंताएं बढ़ा दी हैं.
महाराष्ट्र के नासिक में स्थित देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव में पिछले बीस दिनों में प्रति क्विंटल प्याज का औसत दाम 1370 रुपये से बढ़कर 2421 रुपये पर पहुंच गया है. इसके बाद केंद्र सरकार ने प्याज की क़ीमतों पर लगाम लगाने के लिए प्याज के निर्यात पर 40 फ़ीसद निर्यात कर लगा दिया है.
इसके साथ ही सरकार ने साल 2023-24 के लिए अपने प्याज के स्टॉक को तीन लाख टन से बढ़ाकर पांच लाख टन करने का फ़ैसला किया है. लेकिन जहां एक ओर केंद्र सरकार प्याज की बढ़ती क़ीमतों को थामने की कोशिश कर रही है. वहीं, किसानों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है.
लेकिन सवाल उठता है कि प्याज की क़ीमतें एकाएक बढ़ने की वजह क्या है. दिल्ली से लेकर मुंबई तक देश के तमाम शहरों और ग्रामीण इलाक़ों में प्याज की खुदरा क़ीमतों में उछाल आना शुरू हो गया है.
बेमौसम बरसात भी एक वजह
क़ीमतों में आए उछाल की एक वजह रबी की फसल में प्याज की कम पैदावार होना भी है.भारत में हर साल रबी और ख़रीफ़ नामक दो मुख्य फसलें उगाई जाती हैं.
इनमें से रबी को गर्मियों की फसल कहा जाता है, जिसे दिसंबर-जनवरी में बोया जाता है और मार्च के बाद काटा जाता है. वहीं, ख़रीफ़ की फसल जून-जुलाई में बो कर सितंबर में काटी जाती है. इसके साथ ही सितंबर में भी ख़रीफ़ की एक फसल बोई जाती है, जिसे दिसंबर और जनवरी में काटा जाता है.
इनमें से रबी की फसल को सबसे ज़्यादा समय तक संरक्षित किया जा सकता है क्योंकि इसमें नमी सबसे कम होती है. और किसान धीरे-धीरे इस फसल के दौरान उगाए गए प्याज को मार्केट में बेचते हैं ताकि प्याज की अति उपलब्धता होने की वजह से उसके दामों में तेज़ी से गिरावट न आए.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़, प्याज के उत्पादन में कमी की शुरुआत पिछले साल हुई थी. पिछले साल भारत में 3.76 लाख हेक्टेयर की जगह 3.29 लाख हेक्टेयर पर प्याज बोया गया. इसके बाद मार्च अप्रैल में रबी की फसल बर्बाद होने से स्थिति ख़राब हुई क्योंकि प्याज उगाने वाले ज़्यादातर राज्यों, जिनमें महाराष्ट्र भी शामिल है, को बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि का सामना करना पड़ा.
उदाहरण के लिए, बीते मार्च जब नासिक में प्याज की फसल लगाई जा रही थी, उसी वक़्त लगातार कई दिनों तक ओलावृष्टि का सामना करना पड़ा. इस दौरान प्याज की लगभग चालीस फीसद फसल प्रभावित हुई जिसमें से 20 फीसद ज़मीन को वापस जोता गया.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, दिल्ली में प्याज की खुदरा क़ीमत 40 रुपये प्रति किलोग्राम के क़रीब पहुंच गई है. इसकी वजह प्याज का उत्पादन कम होना और निर्यात बढ़ना बताई जा रही है. बाज़ार से जुड़े रुझानों पर नज़र रखने वाली संस्था क्रिसिल ने अब से लगभग 20 दिन पहले अपनी रिपोर्ट में प्याज के दाम बढ़ने से जुड़ी चेतावनी जारी की थी.
इस रिपोर्ट में बताया गया था कि प्याज की “मांग और आपूर्ति के बीच बना हुआ असंतुलन क़ीमतों में वृद्धि के रूप में नज़र आएगा. प्याज उत्पादन में लगे लोगों से मिली जानकारी के मुताबिक़, सितंबर की शुरुआत में प्याज की खुदरा क़ीमत 70 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुँच सकती है. हालांकि, ये क़ीमतें साल 2020 में दर्ज की गईं उच्चतम क़ीमतों से कम रहेंगी.”
इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि रबी की फसल के दौरान उगाया गया प्याज दूसरी फसलों के दौरान उगाए गए प्याज की तुलना में एक-दो महीने कम टिकता है. इसके साथ ही फ़रवरी और मार्च में रबी की फसल में उगे प्याज की तेज बिकवाली के चलते जो स्टॉक सितंबर में ख़त्म होना था, वो अगस्त के अंत में ही ख़त्म हो गया. इस वजह से 15 से 20 दिनों तक प्याज की क़ीमतों में उछाल दिखेगा.
और ख़रीफ़ की फसल बाज़ार में आते ही प्याज के दामों में गिरावट दिखनी शुरू हो जाएगी. क्रिसिल ने बताया था कि ऐसा अक्टूबर की शुरुआत से होगा.
सरकार ने क्यों लगाया निर्यात कर?
केंद्र सरकार ने तेजी से बदलती स्थिति को संभालने के लिए प्याज के निर्यात पर 40 फीसद निर्यात कर लगाने का फ़ैसला किया है. विपक्षी दल इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं.
शिव सेना (उद्धव ठाकरे गुट) के मुखपृष्ठ सामना में दावा किया गया है कि मोदी सरकार किसानों की आय दोगुना करने का दावा करती है लेकिन इस तरह के फ़ैसले लेती है, जिनसे उन्हें अपेक्षित आमदनी भी नहीं होती है. सामना में ये भी लिखा गया है कि सरकार की ये नीति न तो किसानों के लिए फ़ायदेमंद है और न ही उपभोक्ताओं के लिए. लेकिन सरकार अपने इस फ़ैसले को सही समय पर लिया गया फ़ैसला बता रही है.
संघीय उपभोक्ता मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया है कि सरकार ने प्याज को ‘स्थानीय स्तर पर उपलब्ध बनाए रखने के साथ-साथ कीमतों पर लगाम लगाने के लिए समय रहते ये कदम उठाया है.’ उन्होंने कहा है कि ‘जब तक स्थिति नहीं सुधरती तब तक सरकार अपने पास मौजूद प्याज को खुदरा और थोक बाज़ार में जारी करना जारी रखेगी.’
सिंह के मुताबिक़, सरकार इस समय दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और असम में प्याज बाज़ार में उतार रही है. पिछले दो दिनों में सरकार ने 25 रुपये किलो की सब्सिडाइज़्ड दर पर 2500 टन प्याज बेचा है.सिंह ने बताया है कि ‘हाल ही में प्याज के निर्यात में तेज उछाल दर्ज किया गया है.’
ऐसे में इस बात की संभावनाएं हैं कि सरकार ने प्याज के निर्यात में आई बढ़त को ध्यान में रखते हुए ये फ़ैसला लिया हो.क्योंकि इस साल एक अप्रैल से 4 अगस्त के बीच 75 लाख टन प्याज निर्यात किया गया है. जबकि साल 2022-23 में 25.25 लाख टन, 2021-22 में 15.37 लाख टन, और 2020-21 में 15.78 लाख टन प्याज निर्यात किया गया था.
प्याज आयात करने वाले तीन शीर्ष देश बांग्लादेश, मलेशिया और संयुक्त अरब अमीरात हैं.