महात्मा गांधी के बारे में एक बहुत ही बड़ा वाक़या जो उनके एक मित्र केलेनबाख ने बताया कि आखिर कैसे एक अति साधारण आदमी ने बकरी , चरखा और तकली लेकर दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य को हिला दिया ?
इसका एक राज है, वह राज एक घटना में छिपा हुआ है। वह घटना है जब दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी को अंग्रेज मजिस्टेट के सामने अदालत में पेश किया जाता है। गांधी अदालत में खड़े होकर कहते हैं कि मैं सरकार द्वारा लगाए गए सारे आरोपों को स्वीकार करता हूँ। मजिस्टेट जनरल स्टमस पूरे मुकदमे के बाद गांधीजी से यह कहता है कि जो कानून है उस कानून के मुताबिक मैं मजबूर हूँ कि आपको 6 साल की सजा सुनाऊं लेकिन अगर सरकार , वाइसराय और इंग्लैंड की महारानी किसी भी प्रकार इस सजा को खत्म कर सकें या कम कर सकें तो दुनिया में सबसे ज्यादा खुश होने वाला प्राणी मैं खुद होऊंगा। ये अंग्रेज जज जनरल स्टमस कह रहे हैं और सजा देने के बाद वे अपनी सीट से खड़े हो जाते हैं । पूरा कोर्ट परिसर उठकर खड़ा हो जाता है। कोर्ट परिसर में तालियां गूंजने लगती हैं। महात्मा गांधी 6 साल की सजा सुनने के बाद उस जज से कहते हैं कि आपने पूरे केस के दौरान मुझसे जो सभ्यतापूर्ण व्यवहार किया है उसके लिए मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूँ।
जज जनरल स्मट्स ने गांधीजी से कहा कि तुमसे मेरी लड़ाई है लेकिन मैं तुमसे कैसे लड़ूं? एक तुम ही तो हो कि जो हर संकट में मेरी ढाल बन जाते हो! आज मेरा मन कह रहा है कि हिंसा बदला लेने का सुख देती है, वक्ती जीत का अहसास भी कराती है लेकिन टिकती नहीं है ।हिंसा, क्रोध या घृणा की लाचारी यह है कि उसकी उम्र बहुत कम होती है। कोई कितने वक्त तक किसी के प्रति घृणा पाले रख सकता हैं? आप पूरा जोर लगा लें तो भी यह भाव दम तोड़ने लगता है, इसकी व्यर्थता महसूस होने लगती है।
जब गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आ रहे थे तो जज जनरल स्टमस ने कहा था कि एक बहुत बड़ा महात्मा दक्षिण अफ्रीका से हमेशा के लिए जा रहा है। स्मट्स ने रुंधे हुए गले से कहा कि मैंने महात्मा गांधी को सजा सुनाई थी तो मैं अंदर से टूट गया क्योंकि जब गांधी जेल में थे तो उन्होंने एक कैदी के रूप में जेल के नियम के अनुसार मेरे लिए चप्पल बनाई थी और मुझे भेंट की थी। जब भी मैं गांधी के हाथ के बनी उस चप्पल को पहनता था तो मेरी अंतरात्मा मुझे धिक्कारती थी।मेरी पत्नी और मेरी बच्ची ने भी मुझे धिक्कारा। मुझे अंदर से ग्लानि होती थी और लगता था कि मेरे पैर इस चप्पल के लायक नहीं हैं। आज भी वह चप्पल जोहान्सबर्ग के गांधी म्यूजियम में रखी हुई है।