Tuesday, October 22, 2024

मजदूर राजनीती का अंत

लेखक –

कौशल किशोर शर्मा            (वरिष्ठ अधिवक्ता)

देश में लोक सभा चुनाव प्रचार उफान पर है। मंदिर मस्जिद,जाति धर्म की चर्चा में मतदाता मशगूल हैं लेकिन अब चुनावों में कोई राजनैतिक दल प्रबन्ध मे श्रमिकों की भागीदारी की चर्चा नहीं करता जबकि संविधान के अनुच्छेद 43 ए के द्वारा उद्मोगों के प्रबन्ध मे श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है परन्तु संविधान की शपथ लेकर राज करने वाले ” कल्याणकारी राज्य ” उद्मोगपतियों के हित संवर्धन के लिए श्रमिकों के वेतन भत्तों आदि मूलभूत सुविधाओं मे कटौती के लिए हर क्षण तत्पर रहते हैं परन्तु संवैधानिक प्रावधान होने के बावजूद उद्मोगों के प्रबन्ध मे श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित कराने हेतु विचार करने के लिये भी तैयार नहीं है।

बहुत पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करके मुम्बई स्थित निजी क्षेत्र की फैक्ट्री ” कमानी ट्यूबस ” का प्रबन्ध श्रमिकों को सौंपा और आई डी बी आई बैंक को अपेक्षित पूँजी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। 1989 मे इस फैक्ट्री का प्रबन्ध श्रमिकों ने अपने नियंत्रण मे लिया था और जबर्दस्त सफलता के साथ सात वर्षों तक उसका संचालन किया।( फैक्ट्री की वर्तमान स्थिति मेरी जानकारी मे नहीं है )कमानी ट्यूबस के अनुभव का लाभ उठाकर अन्य उद्मोगों और राज्यों मे ऐसे ही प्रयासों को प्रोत्साहन दिये जाने की जरूरत थी परन्तु उद्योग पतियों को खुश रखने के लिये सरकारों की अरूचि के कारण इन प्रयासों को दोहराया नहीं जा सका।

कांग्रेसी सांसद रहे रामरतन गुप्ता की लक्ष्मी रतन काटन मिल कानपुर मे भी श्रमिकों को प्रबन्ध मे भागीदारी करने का एक अवसर मिला था परन्तु मिल मालिको की हठधर्मिता के कारण मिल बन्द हो गई और बाद मे सरकार ने उसका अधिग्रहण किया और अधिग्रहण होते ही प्रबन्ध मे श्रमिकों की भागीदारी की चर्चा भी समाप्त हो गई जबकि अधिग्रहण किये जाने के पूर्व मिल श्रमिकों के प्रबन्ध में थी।

कारखानों के प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी के अभूतपूर्व फायदे हैं। उत्पादन और उत्पादकता से सम्बन्धित समस्याओं का ज्ञान श्रमिकों को अन्य किसी से ज्यादा होता है।उत्तरप्रदेश सरकार के श्रम मंत्री के नाते विक्टोरिया काटन मिल के अधिग्रहण मे श्री हेमवतीनंदन बहुगणा की महती भूमिका थी। अधिग्रहण के बाद मिल मे कुछ आद्मौगिक और तकनीकी समस्यायें उत्पन्न हो गईं । बहुगणा जी ने खुद मिल के अंदर जाकर श्रमिकों के साथ बातचीत करने का निर्णय लिया। वे आये और उन्होंने मिल का निरीक्षण किया। स्पिनिंग विभाग मे सभी कि उपस्थिति मे एक श्रमिक ने उन्हें बताया कि प्लांट मे समुचित कूलिंग की कमी के कारण तागा ज्यादा टूटता है इसलिये उत्पादन कुप्रभावित होता है और उत्पादकता भी घटती है। असली समस्या और उसके समाधान का ज्ञान केवल श्रमिको को होता है परन्तु उनकी कोई सुनता ही नहीं।

जे के प्रतिष्ठान की सभी मिलो मे श्रमिकों द्वारा चुनी गई एक समिति भविष्य निधि का संचालन करती थी। इन मिलों के श्रमिकों के भविष्य निधि की धनराशि भविष्य निधि कमिश्नर कार्यालय मे जमा नहीं की जाती थी।जे के प्रतिष्ठान द्वारा बनाये गये एक ट्रस्ट मे धनराशि जमा होती थी और उसके संचालन मे श्रमिकों की अनिवार्य भागीदारी थी जो श्रमिकों द्वारा मतदान से चुनी जाती थी। इस ट्रस्ट ने उस समय कमलानगर कानपुर मे एक जूनियर हाईस्कूल स्थापित किया था। एक इंजीनियरिंग कालेज स्थापित करने की योजना थी जो मिले बंद हो जाने के कारण सफल नहीं हो सकी।

उद्मोग के साथ आम श्रमिकों की अपनी और अपने परिवार की कुशलक्षेम जुडी होती है इसलिए वह किसी भी दशा मे उद्मोग को क्षति नहीं पहुँचा सकते। उन्हें समस्या का जमीनी ज्ञान होता है इसलिये उनके सक्रिय सहयोग और जमीनी अनुभव से समाधान खोजना आसान हो जाता है । अनावश्यक श्रमिक अशांति भी उत्पन्न नहीं होती। श्रमिक से मिस्त्री, और फिर पदोन्नति पाकर सुपरवाइजर बने कर्मचारी किसी इन्जीनियर की तुलना मे ज्यादा कुशल और सक्षम होते हैं । इन सभी पहलुओं पर लम्बे विचार विमर्श के बाद संविधान मे संशोधन करके प्रबन्ध मे श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने का निर्णय लिया गया था परन्तु सरकार की तो छोडिये, अब श्रमिक नेताओं ने भी इस मुद्दे की चर्चा को तिलांजलि दे दी है।

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