Saturday, July 27, 2024

बनारस : बहती है जहाँ जीवन की गंगा

दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक बनारस हर युग में आध्यात्म और संस्कृति का केंद्र रहा है | बनारस का अलग स्थान इसलिए भी है क्योंकि यहाँ जीवन और मृत्यु साथ – साथ चलते हैं, और उसके बीच में बसती है आध्यात्मिक शक्तियां और धार्मिक सद्भावना…
बनारस को समझने से ज्यादा उसे महसूस करने और जीने में मज़ा है | मज़ा तो वहाँ चटोरी जबान, देशी ठाट अंदाज़ और मस्तमौला जीवन शैली का भी है | बनारस की प्रेम भाषा गाली है, जिसका जिससे जितना करीबी रिश्ता – उसके लिए उतनी ही बेहतरीन सार्वजनिक गाली, अपनी रफ़्तार से मंजिल की ओर मगनमन बहती गंगा के किनारे बनारसी पान की गिलौरी जहाँ तेजी से मुँह में घुलती हैं वहीं समानांतर बहती है एक और गंगा जिसे ज्ञान गंगा कहा जाता है | भाँती भाँती के विचारक अपनी बेतुकी राय भी बेहद अदबीय अंदाज़ में प्रस्तुत करते हैं, और रोचक इतनी कि एक बार को बनारस कि बारीक गलियों से निकलना आसान हो मगर बातों के बताशों के बीच से निकलना मुश्किल प्रतीत पड़ता है |
वैसे तो विचारकों ने बनारस को कई परिभाषाओं में बाँधने की कोशिश की मगर प्रधानमंत्री नेहरू बनारस को पूर्व दिशा का शाश्वत नगर मानते थे। बनारस अपने भीतर उतरने का मार्ग है जो कि आज रील के रेले का शिकार होते भी दिखता है जिससे महंगे कैमरे वाला एक बड़ा हुजूम बनारस की बाजार और आर्थिक हालात को तो बढ़वा देता है, फिर चाहें वो मोती का बाज़ार हो या बनारसी साड़ी का व्यापार मगर कहीं ना कहीं सच्चे भक्तों और शान्तिप्रिय मनुष्यों के लिए बाधा का कारण भी बनता है |
बुद्ध ने ज्ञान बोध गया में प्राप्त किया पर धर्म चक्र प्रवर्तन के लिए ऋषि पत्तन यानी सारनाथ, वाराणसी आए। तुलसी यहीं पर राम के गीत गाते हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के लिए गागा भट्ट काशी से जाते हैं। महान विचारक, स्वतंत्रता सेनानी, कर्मयोगी भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय ने भी यहीं काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की। कह सकते हैं जिसे काशी ने स्वीकार किया, वह जग का हो गया। दरअसल, काशी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संवाद की प्रयोगशाला रही है।

द वायर की अदिति भारद्वाज बनारस पर केंद्रित अपने एक लेख की शुरवात में कहती हैं कि बनारस गलियों का शहर, मंदिरों का शहर, रबड़ी-लस्सी का शहर, हींग कचौरियों का शहर, भीड़ का शहर, देश के कोने-कूचों से आए श्रद्धालुओं का शहर, सुदूर देशों के सैलानियों का शहर, बनारसी साड़ी का शहर, गंगा के अनगिनत घाटों के साथ ही , मोक्ष का शहर भी है |

चाट का चटकारा और मलाईयों की मिठास
बनारस की कोई गली चाट की खुशबु बिखेर रही होती है तो कोई गली मलाईयों की मिठास । कहीं रस मलाई तो कहीं चटपटी कचौड़ी, व्यंजनों के मामले में हर गली-मोहल्ले खास हैं। पक्के महाल के चौखंभा में ‘राम भंडार’ की कचौड़ी का स्वाद लेने के लिए सुबह से ही ग्राहकों की कतार लगती है। इसके अलावा कचौड़ी गली में राजबंधु की प्रसिद्ध मिठाई की दुकान में काजू की बर्फी, हरितालिका तीज पर केसरिया जलेबी व गोल कचौड़ी, ठठेरीबाजार में श्रीराम भंडार की तिरंगी बर्फी, और तो और केदारघाट की संकरी गलियों में दक्षिण भारत का स्वादिष्ट व्यंजन इडली व डोसा भी दक्षिण भारत की ही याद दिलाता है। चटपटी चाट के लिए जहां काशी चाट भंडार, अस्सी के भौकाल चाट, दीना चाट भंडार और मोंगा आदि काफी लोकप्रिय है, वहीं, ठठेरी बाजार की ताजी और रसभरी मिठाइयाँ दुनियाभर में भेजी जाती हैं ‘पहलवान की लस्सी’ पर्यटकों की पहली पसंद होती है|

सांस्कृतिक विरासत
बनारस का प्राचीन नाम काशी था। विभिन्न ग्रंथों में इसे आनंदवन, अविमुक्त क्षेत्र , आनंद कानन वाराणसी आदि नामों से भी उल्लेखित किया गया है। वाराणसी इसका आधिकारिक नाम है। यह भारत का सबसे प्राचीनतम जीवित नगर है। इस शहर का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद से मिलना शुरू होता है और फ़िर भारतीय इतिहास के हर दौर में मिलता जाता है जिसमें कभी यह शिक्षा का प्रमुख केंद्र होता है तो कभी व्यापार का, कभी स्वतंत्रता आंदोलन का और मौजूदा समय में देश की राजनीति का भी.
बनारस भले ही हिंदू तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता हो लेकिन यहां जैन धर्म के चार तीर्थंकरों के भी स्थल हैं। इनमें सारनाथ में श्रेयांसनाथ, चंद्रावती में चंद्रप्रभु तो शिवाला व भेलूपुर में जैन तीर्थंकरों की स्थलियां हैं। भदैनी (अस्सी) पर रानी लक्ष्मी बाई की जन्म स्थली गर्वानुभूति कराती है। काशी की बेटी की स्मृतियों को संजोते हुए पर्यटन विभाग की ओर से इसे सजाया संवारा गया है। वाराणसी से आजमगढ़ रोड पर शहर से तीन किलोमीटर दूर मुंशी प्रेमचंद की जन्म स्थली लमही स्थित है। उनके भवन के साथ ही स्मारक को भी संरक्षित किया गया है।

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