Wednesday, April 30, 2025

पुस्तक समीक्षा – जाफरी चच्चा अब नहीं चीन्हते

इस पुस्तक का पहला संस्करण वर्ष 2024 के अंतिम माह में प्रकाश में आया, विशेष बात यह रही कि इस कृति के लेखक की यह पहली पुस्तक थी और विशेष इसलिए भी कि भावुक मिजाज के लेखक सुनील द्विवेदी लंबे समय से पत्रकारिता के पेशे में हैं|

पत्रकारों का लिखा इतिहास बन जाता है, ऐसे में कई बड़े शहरों के संपादक रह चुके व्यक्ति का लिखा पढ़ने की जिज्ञासा आम बात है और ये जिज्ञासा अधिक प्रबल तब हो जाती है जब उसका जुड़ाव स्वयं के पैतृक गाँव से हो, व्यावसायिक प्रगति के दौर में अधिकांश लोग ग्रामीण जुड़ाव से इतिश्री कर आँचलिक रिश्तों को होम कर देते हैं, मगर पुस्तक की कहानियों में डूबने से पहले लेखक के किरदार में ऐसा नहीं झलकता… एक समय था जब कहानियाँ ही मनोरंजन का एक मात्र उपलब्ध साधन थीं और कहानियों के प्रचलन से लेखक की ख्याती होती थी मगर अब लेखक की ख्याति और पहचान से कहानियाँ पाठक तक पहुँचती हैं| पत्रकार अपनी लेखनी से वर्तमान को दर्ज तो करते ही हैं लेकिन बात तब कुछ और होती है जब अतीत में नजदीक से गुजरे पलों को कहानी के माध्यम से समेट कर सामाजिक पीड़ाओं पर चोट की जाए|

तक़रीबन 125 पेज की सीमा में आठ दिलचस्प कहानियों को समेटे इस पुस्तक का मूल्य 260₹ है, जिसे कौटिल्य बुक्स ने छापा है तो वहीं डॉ• अवधेश मिश्र ने आकर्षक कवर पेज से पुस्तक को सुशोभित किया है| ग्रामीण भाषा की महक सिर्फ किताब के शीर्षक से ही नहीं आती है बल्कि कहानियों और किरदारों के कथनों में भी बयाँ होती है|

किताब के शीर्षक ‘जाफरी चच्चा अब नहीं चीन्हते’ के नाम से ही दर्ज पहली कहानी जो कि किताब की सबसे लम्बी कहानी भी है, यह कहानी बस के सफ़र से शुरू हो कर बस के सफर पर ही अंत पाती है, और बीच में होती है गाँव, समाज, रिश्तों की बदलती तस्वीरें… ऐसा लगा कि ये कहानी काल्पनिक नहीं बल्कि लेखक के जीवन का नज़दीकी हिस्सा हों क्योंकि किताब के बैक कवर पर लेखक परिचय में उल्लेखित जन्मस्थान व पैतृक गाँव ‘तिश्ती’ और उसके आस-पास के इलाकों का जिक्र इस कहानी में कई जगह मिलता है जैसे कानपुर, रावतपुर, मंधना, ककवन आदि|

इस कहानी में पिता के प्रतिबिंब और चाचा – भतीजे के बीच संपत्ति के महत्व को रिश्तों की महक से कई ज्यादा तल्ख़ और कठोर दिखाया गया है तो वहीं अंतर्जातीय विवाह से बिखरते परिवार का किस्सा शामिल है|

कहानी ‘तुम ऐसे हार नहीं मान सकते प्रभुनाथ’ खुद को बेरोजगार ना रहने देने की ऐसी चाह जो अभिभावकों के मरने का इंतजार कर मृतक आश्रित नौकरी पा लेने की इच्छा के साथ समाप्त होती है, इस कहानी की शुरुआत पार्षदीय विद्यालय के हेड मास्टर विजय नारायण की आत्महत्या बाद मृतकआश्रित नौकरी पर पैदा हुए सवालों से होती है|

कहानी एक ‘पागल की प्रेम कथा’ , ये कहानी पुत्तन नाम के किरदार के अजब-गजब व नासमझी और लड़कपन का प्रेम पर आधारित जो भूत-प्रेत और तंत्र-मंत्र से गुजर कर मृत्यु तक पहुँचती है| इस कहानी में 27 दिसंबर 2007 को पाकिस्तान में हुई बेनजीर भुट्टो की हत्या का उल्लेख भी है, जिसकी तुलना लेखक ने इंदिरा गाँधी की हत्या से की है|

कहानी ‘लाली’ मात्र 10 साल का वैवाहिक जीवन जी कर विधवा हुई नायिका और उसकी उद्यमिता पर है जो लाली नाम से प्रख्यात है, जो वयस्कों की लाली मौसी है तो बच्चों की लाली दादी… जो कठिन परिस्थितियों में समझौता ना कर सहानुभूति की दरकार ना कर ग्रामीणों को लाभान्वित करने वाला रोजगार कर आत्मनिर्भर हो गई|

सभी कहानियों में मानो जैसे लेखक ने चश्मदीद किस्सों को कहानी में ढाल दिया गया हो तो वहीं अंतिम कहानी ‘गुड बॉय ड्रीम गर्ल’ चाहत, वासना, प्रेम और प्रतीक्षा के हवाले से कई सवाल आपके जहन में छोड़ जाएगी|

प्रथमदृष्टया ये किताब अपने पाठकों को शहर और गाँव के आचरणों की बदलती तस्वीर की एक बेहतर झलक प्रस्तुत करने में मददगार प्रतीत होने के साथ ही सामाजिक रिश्तों में कम होती मानवता को भी प्रेषित करती है| कलम के कारीगर श्री सुनील द्विवेदी अपनी कहानियों के माध्यम से मानवीय पीड़ाओं और संवेदनाओं को समेटने और व्याख्याियित करने में सफल रहे हैं|

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