हिन्दी पत्रकारिता द्वि शताब्दी वर्ष पर अतीत के आईने में पढिए उदन्त मार्तण्ड समाचार पत्र की दिलचस्प कहानी, लेखक कानपुर इतिहास समिति के महासचिव हैं|
हिन्दी पत्रकारिता के जनक पं. युगलकिशोर शुक्ल
हिन्दी पत्रकारिता का उदभव् 30 मई 1826 को “उदन्त मार्तन्ड “पत्र के प्रवेशांक प्रकाशित होने के साथ हुआ | हिन्दी पत्रकारिता के सम्पादक पं. युगलकिशोर शुक्ल (1788 – 1853) का जन्म कानपुर जनपद के कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार मे हुआ था | बाद में वह कलकत्ते जा कर दीवानी अदालत मे प्रोसीडिंग रीडर हुए व बाद मे वकालत की सनद लेकर वकील हो गए | कानपुर के पण्डित अम्बिकाप्रसाद बाजपेयी ने समाचार पत्रों का इतिहास में लिखा है कि बंगला पत्रों में उदन्त मार्तण्ड चर्चा के प्रसंग में लिखा गया है उससे इतना ही जाना जाता है कि ये कानपुर से कलकत्ते गये थे और कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। यह भी जाना गया कि पहले वे सदर दीवानी अदालत में क्लर्क या लेखक थे बाद में वकील हो गये थे। समाचार चन्द्रिका नामक बंगला पत्रिका ने अपने 11 मार्च 1826 के अंक में नागरीर नूतन समाचार पत्र शीर्षक से जो सूचना प्रकाशित की थी, उसी से युगल किशोर जी के मूल स्थान का पता हमें मिला था ।”
अम्बिकाप्रसाद बाजपेयी जी को यदि बंगला पत्रिका समाचार चन्द्रिका के नागरीर नूतन समाचार पत्र शीर्षक से 11 मार्च 1826 के अंक से पण्डित युगल किशोर शुक्ल के मूल स्थान का पता चला है । तब तक तो उदन्त मार्तण्ड का आवेदन ही हुआ था पत्र शुरू नहीं हुआ था अर्थात पण्डित युगल किशोर शुक्ल जी द्वारा सरकार को जो पत्र शुरू करने के लिए आवेदन या डिक्लेरेशन दाखिल किया गया उसमें साकिन कानपुर दर्ज किया गया था जिससे पत्रकारिता जगत को उनका मूल स्थान ज्ञात हुआ और संभावित शुरू होने वाले पत्र का समाचार में इसकी सूचना दी गई जिसका उल्लेख बाजपेयी जी ने अपनी किताब में किया था।
उदन्त मार्तण्ड पत्र के लिए तत्कालीन गवर्नर जनरल से शुक्ल जी ने पत्र प्रकाशन की अनुमति 16 फरवरी 1826 को प्राप्त कर ली थी और 30 मई 1826 को हिन्दी का प्रथम पत्र “उदन्त मार्तण्ड ” निकाला था। उदन्त मार्तण्ड प्रकाशन के लिए शुक्ल जी ने सरकार के मुख्य सचिव सी.लगसिंटन के समक्ष एक फरवरी 1826 को आवेदन प्रस्तुत किया था|
महाशय,
हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि में एक साप्ताहिक समाचार पत्र “उदन्त मार्तण्ड” को प्रकाशन का आकांक्षी होकर, मै आपकी अनुमति से मजिस्ट्रेट के सम्मुख अपने और मुन्नू ठाकुर द्वारा परिपुष्ट अपेक्षित शपथ पत्र प्रेषित करना एवं उसके लिए सरकारी स्वीकृति का अनुरोध करता हूँ।
हस्ताक्षर
(युगलकिशोर)
इसके उत्तर में सरकार के मुख्य सचिव ने लिखा था :-
” सपरिषद गवर्नर जनरल शपथ पत्र में उल्लिखित भवन तथा स्थान 37, अगरतल्ला लेन, कलकत्ता से अन्य किसी स्थान में नहीं, मुन्नू ठाकुर को एक समाचार उदन्त मार्तण्ड के मुद्रित एवं प्रकाशित करने का अधिकार प्रदान करते हैं, किसी भी दशा में मुन्नू के अतिरिक्त और कोई व्यक्ति या व्यक्ति समूह प्रकाशक नहीं हो सकता और पं. युगल किशोर शुक्ल के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति या व्यक्ति समूह संचालक नहीं हो सकता है।
आदेशानुसार
सपरिषद महामहिम गवर्नर जनरल
16 फरवरी 1826
समाचार पत्रों का इतिहास में अम्बिका प्रसाद बाजपेयी जी ने लिखा है कि किसी पुस्तक में लिखा गया है कि मन्ना ठाकुर इसके संपादक थे, पर यह ठीक नहीं है। मन्ना ठाकुर मुद्रक और अधिक से अधिक मैनेजर भले ही हो संपादक नहीं थे। युगलकिशोर जी में पत्र संपादन की योग्यता थी।
उदन्त मार्तण्ड पत्र के प्रथम अंक मे आदि सम्पादक पं. युगल किशोर शुक्ल जी लिखते हैं...
” यह उदन्त मार्तण्ड अब पहले पहल हिन्दुस्तानियों के हित के हेत जो आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंग्रेजो ओ पारसी ओ बंगले मे जो समाचार का कागज छपता हैं उसका सुख उन बोलियों के जानने ओ पढ़ने वालो को ही होता हैं | इससे सत्य समाचार हिंन्दुस्तानी लोग देख कर आप पढ़ ओ समझ लेयँ ओ पराई अपेक्षा न करे जो अपने भाषे की उपज न छोडे | इसलिए श्रीमान गवर्नर जनरल बहादुर की आयस से एेसे साहस मे चित्त लगाय के एक प्रकार से यह ठाठ ठाठा |जो कोई प्रशस्त लोग इस खबर के कागज के लेने की इच्छा करें तो अमड़ा तला की गली 37 अंक मार्तण्ड छापाघर मे अपना नाम ओ ठिकाना भेजने से ही सतवारे के सतवारे यहाँ के रहने वाले घर बैठे और बाहिर के रहने वाले डाक पर कागज पाया करेंगे|”
इसके प्रथम अंक में ही अन्त में यह श्लोक छपा था।
युगल किशोर: कथयति धीर: सविनयमेतत सुकुलजवंश: ।
उदिते दिनकृत सति मार्तण्डे तद्वत विलसति लोक उदन्ते ।।
पत्र मे प्रकाशित होने वालीआदर्श काव्योक्ति ….
दिनकर कर प्रगटत दिनहि यह प्रकाशं अठय़ाम |
ऐसो रवि अब उग्यो नहि जोहि तेहि सुख को धामं ||
उत कमलानि विगसित करत बढतव चाव चित वाम |
लेत नाम य़ा पत्र को होत हर्ष अरु काम ||
आर्थिक कठिनाईयों के कारण 4 दिसम्बर 1827 को उदन्त मार्तण्ड पत्र के विसर्जन की घोषणा शुक्ल जी ने इन पंक्तियो से कर दी…
आज तलक लौं उगि चुक्यो मार्तण्ड उदन्त ,
अस्ताचल को जात हैं दिनकर दिन अब अंत|
उसके बाद शुक्ल जी ने कुछ पैसा जोड़ कर 1850 मे साम्य दन्त मार्तण्ड पत्र निकाला जो दो साल बाद 1852 मे बंद हो गया था | पण्डित युगल किशोर शुक्ल जी ने अपनी पहली संपादकीय में लिखा था कि “हिन्दी का समाचार पत्र कौन पढ़े और खरीदे ?
“शूद्र चाकरी आदि नीच काम करते हैं, उन्हें पढाई-लिखाई आदि से मतलब नही । कायस्थ फारसी-उर्दू पढ़ा करते हैं और वैश्य अक्षर-समूह सीखकर बही खाता करते है, खत्री बजाजी आदि करते है पढ़ते-लिखते नही, और ब्राह्मणों ने तो कलियुगी ब्राह्मण बनकर पठन-पाठन को तिलांजलि दे रखी है फिर हिन्दी का समाचार पत्र कौन पढ़े और खरीदे ?”
इसी प्रकार उदंत मार्तण्ड पत्र में प्रकाशित एक कनपुरिया समाचार नमूने के रूप में प्रस्तुत है। जिसमें अवध के नवाब गाजीउद्दीन हैदर और लार्ड एमहर्स्ट की कानपुर मे हुई भेंट का समाचार है।
“अवध विहारी बादशाह के जाने के लिए कानपुर के तले गंगा में नावों की पुल बन्दी हुई और बादशाह बड़े ठाट से गंगा पार हो गवरनर जनरेल बहादुर के सान्निध गये | लार्ड अमहर्स्ट जब कानपुर पहुँचे थे उस समय जैसे सिपाहों का दोहरा परा बँधा था वैसे ही बादशाह के कानपुर जाने में भी परा बँधा था| बादशाह जब कानपुर में बैठे तब लार्ड अमहर्स्ट अपने अामात्यो को ले कर के हाथी की सवारी पर ग्राष्ट साहब की कोठी से थोड़ी दूर आंगे बढ रहे थे ओ साथ के तुर्क सवार चारो ओर से परा बांधे हुए खड़े थे | इस उपरान्त बादशाह एक तख्त खाली सवारी पर उतरे ऊपर ही ऊपर बडे साहिब के हाथी पर हो बैठे ओ बडे साहिब से मिला भेंटी हुई | फिर वार्तालाप होते ग्राष्ट साहब की कोठी को गए | लखनौ बादशाह के साथ नवाब मोहतनदौला और उनके सोलह आदमी मुसाहिब साथ थे | लार्ड साहिबो ने उस दिन वहाँ के सब काम ओ पलटिनिये साहिबो की हाजरी का नेवता दिया था और 81 आदमियों ने एक मेज मे बैठ के भोजन किया | भोजन हुए उपरान्त बादशाह को बढ़िया कपडे और दुशाले ओ भांति भांति के आभरण ओ रत्न करके खचित ओ जटित एक्यावन थार आगे धरा ओ उनके पोते को बीस थार ओ सब भाइयो को बीस -बीस थार के लेखे दिया गया | फिर लार्ड साहिब उठ के बादशाह की ऊँगली मे बड़े मोल की अंगूठी पहिना दी और सब मुसाहिबो को भी यथायोग पारितोषिक दिया | फिर अतर ओ पान के सम्मान हुए पर बादशाह अपनी छावनी को लौट आए | ”
(उदन्त मार्तन्ड पत्र 12 दिसम्बर 1826 ई० कोलकाता)
अनूप कुमार शुक्ल
महासचिव कानपुर इतिहास समिति कानपुर