बाजरे का उत्पादन करने वाले किसानों के लिए एक अच्छी खबर सामने आ रही है. केंद्र और राज्य की सरकार ने बाजरे की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक नई योजना की शुरुआत की है. इस योजना के तहत केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्रालय साल 2026 से 2027 तक बाजरे पर आधारित उत्पादों के प्रोत्साहन पर 800 करोड़ रुपये खर्च करेगा. ऐसे में ये उत्पाद रेडी टू ईट और रेडी टू सर्व दोनों रूपों में होंगे.
उत्तर प्रदेश में होता है बाजरे का सर्वाधिक उत्पादन
भारत में सबसे अधिक बाजरे का उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है. इसे देखते हुए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ योगी की सरकार ने इंटरनेशनल मिलेट ईयर को सफल बनाने की कार्ययोजना करीब छह महीने पहले ही बना चुकी थी. मोटे अनाजों, खासकर बाजरे की खेती इस राज्य की परंपरा रही है. इस योजना के तहत अब इन फसलों के उत्पादन में और ज्यादा बढ़ोतरी लाने का प्रयास किया जाएगा.
मांगों को पूरा करने के लिए 21 राज्यों का किया गया चयन
इस पूरे मसले पर कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि बाजरा सहित अन्य मोटे अनाजों के निर्यात पर भी सरकार का फोकस है. खाद्यान्न उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने उन 30 देशों को चिन्हित किया है, जिनमें निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं. केंद्र सरकार की ओर से मांगों को पूरा करने के लिए और मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कुल 21 राज्यों का चयन किया गया है.
राजस्थान के सर्वाधिक भू-भाग पर होती है बाजरे की खेती
यह बात सर्वव्यापी है कि भारत में बाजरे का कुल उत्पादन का 20 फीसदी बाजरा यूपी में होता है. वहीं, अद्यतन आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में सर्वाधिक, करीब 29 फीसदी रकबे में बाजरे की खेती होती है. इसके बाद महाराष्ट्र करीब 21 फीसदी रकबे के साथ दूसरे नंबर पर है. कर्नाटक 13.46 फीसदी, उत्तर प्रदेश 8.06 फीसदी, मध्य प्रदेश 6.11 फीसदी, गुजरात 3.94 फीसदी और तमिलनाडु में करीब 4 फीसदी रकबे में बाजरे की खेती होती है.
उत्पादन भूमि को बढ़ाने के लिए सरकार ने किया प्रयास
साल 2022 तक यूपी में बाजरे की खेती का रकबा कुल 9.80 लाख हेक्टेयर था, जिसे बढ़ाकर 10.19 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य है. साथ ही उत्पादकता बढ़ाकर 25.53 क्विंटल प्रति हेक्टेयर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. किसानों को इसका वाजिब दाम मिले, इसके लिए सरकार 18 जिलों में प्रति क्विंटल 2350 रुपये की दर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर इसकी खरीद भी कर रही है.
उत्तर प्रदेश की चौथी प्रमुख फसल है बाजरा
कृषि के जानकार गिरीश पांडेय कहते हैं कि गेहूं, धान और गन्ने के बाद बाजरा उत्तर प्रदेश की चौथी प्रमुख फसल है. खाद्यान्न एवं चारे के रूप में प्रयुक्त होने के नाते यह बहुत ही ज्यादा उपयोगी है. पोषक तत्वों के लिहाज से इसकी अन्य किसी अनाज से तुलना ही नहीं है, इसलिए इसे चमत्कारिक अनाज, न्यूट्रिया मिलेट्स, न्यूट्रिया सीरियल्स भी कहा जाता है.
हर तरह के भूमि पर की जा सकती है बाजरे की खेती
वहीं, खेती बाड़ी की जानकारी रखने वाले अमोदकान्त ने बताया कि इसकी खेती हर तरह की भूमि में संभव है. न्यूनतम पानी की जरूरत, 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी परागण, मात्र 60 महीने में तैयार होना और लंबे समय तक भंडारण योग्य होना इसकी अन्य खूबियां हैं. चूंकि इसके दाने छोटे एवं कठोर होते हैं, ऐसे में उचित भंडारण से यह दो साल या इससे अधिक समय तक सुरक्षित रह सकता है. इसकी खेती में उर्वरक बहुत कम मात्रा में लगता है. साथ ही भंडारण में भी किसी रसायन की जरूरत नहीं पड़ती. लिहाजा यह लगभग बिना लागत वाली खेती है. इस फसल में कीड़े-मकोड़े नहीं लगते.
काफी फायदेमंद है बाजरा
कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो बाजरे में गेहूं और चावल की तुलना में 3 से 5 गुना पोषक तत्व होते हैं. इसमें ज्यादा खनिज, विटामिन, खाने के लिए रेशे और अन्य पोषक तत्व मिलते हैं. लसलसापन नहीं होता. इससे अम्ल नहीं बन पाता. लिहाजा सुपाच्य होता है. इसमें उपलब्ध ग्लूकोज धीरे-धीरे निकलता है. लिहाजा यह मधुमेह (डायबिटीज) पीड़ितों के लिए भी फायदेमंद है. बाजरे में लोहा, कैल्शियम, जस्ता, मैग्निशियम और पोटेशियम जैसे तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं. साथ ही काफी मात्रा में जरूरी फाइबर (रेशा) मिलता है. इसमें कैरोटीन, नियासिन, विटामिन बी6 और फोलिक एसिड आदि विटामिन मिलते हैं. इसमें उपलब्ध लेसीथीन शरीर के स्नायु तंत्र को मजबूत बनाता है.