कल शुक्रवार को उत्तर प्रदेश राजकीय अभिलेखागार, लखनऊ के 76वें स्थापना दिवस के अवसर पर ‘1857 का स्वतंत्रता संग्राम’ विषयक अभिलेख प्रदर्शनी एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में शकुन्तला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो• अविनाश चन्द्र मिश्र मौजूद रहे, साथ ही लखनऊ विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो• डॉ• प्रमोद श्रीवास्तव ने प्रदर्शनी का उदघाटन किया|
इस अवसर पर आयोजित ‘1857 का स्वतंत्रता संग्राम’ विषयक अभिलेख प्रदर्शनी का उद्घाटन लखनऊ विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रो• प्रमोद कुमार श्रीवास्तव के कर कमलों द्वारा किया गया।
10 मई तक देखी जा सकती है क्रांतिवीरों के दुर्लभ दस्तावेजों की प्रदर्शनी
यह प्रदर्शनी आम जनमानस के लिए 10 मई, 2025 तक खुली रहेगी। प्रदर्शनी के मुख्य आकर्षण नाना साहब की गिरफ्तारी का इश्तिहार, रानी लक्ष्मी बाई का मृत्यु संबंधी टेलीग्राम तथा उनकी सम्पत्ति को जब्त करने संबंधी आदेश, युद्ध क्षेत्र में बेगम हजरत, अवध में स्वतंत्र सरकार, रेजीडेन्सी में घिरे अंग्रेज, मौलवी अहमद उल्ला शाह का टेलीग्राम तथा सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से सम्बन्धित दुर्लभ चित्र हैं।
मुख्य अतिथि प्रो• अविनाश चन्द्र मिश्रा जी ने कहा कि इतिहास एक संवाद की सतत् प्रक्रिया है किसी इतिहासकार ने इसे सिपाही विद्रोह के रूप में किसी ने इसे किसान आन्दोलन के रूप में परिभाषित किया और कहा कि हम एक प्राचीन संस्कृति के वाहक है, मनुष्य को उसके सांस्कृतिक परिवेश के बिना नहीं समझा जा सकता। 1857 का आन्दोलन किसी बंदूक की चर्बी से नहीं उत्पन्न हुआ बल्कि यह आन्दोलन राष्ट्रीयता का पुनरोद्भव था।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो0 प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ने अवगत कराया कि अभिलेखागार में इतिहास के जीवंत दस्तावेज संरक्षित हैं, युवा शोधार्थियों को इनका अध्ययन कर उन दस्तावेजों में अंकित विषयों के मर्म को समाज के सामने लाना चाहिए।
प्रो• अर्चना तिवारी, लखनऊ विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन में गिरमिटिया मजदूरों का गन्ना उत्पादन के लिए कैरेबियन देशों में अंग्रेजो द्वारा किये गये विस्थापन के सम्बन्ध में विचार व्यक्त किए और 1857 की क्रान्ति के क्षेत्रों से विशेष रूप से गिरमिटिया मजदूरों के विस्थापन पर प्रकाश डाला।
डॉ• सुशील कुमार पाण्डेय, सह प्राध्यापक, इतिहास विभाग, डॉ0 भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ ने अपने वक्तव्य कहा कि इतिहास अतीत की वस्तु है एवं वर्तमान की समस्याओं को सुलझाने का सबसे अच्छा माध्यम है, इसलिए राष्ट्रीय मूल्यों के सापेक्ष इतिहास का पुनर्लेखन किया जाना चाहिए। डॉ• सौरभ कुमार मिश्रा, सहायक प्राध्यापक, ऐशियन कल्चर विभाग, शशिभूषण बालिया विद्यालय डिग्री कॉलेज, लखनऊ ने अपने उद्बोधन में बताया कि 1857 की क्रान्ति कामगार एवं श्रमिक वर्ग के उत्पीड़न का प्रतिफल था।
डॉ• शशि कान्त यादव, सहायक प्राध्यापक, इतिहास विभाग, डी•ए•वी• पी•जी• कालेज, वाराणसी ने अपने उद्बोधन में इस बात पर बल दिया कि शोधकार्य बिना किसी पूर्वाग्रह से किया जाना चाहिए। डॉ• पूनम चौधरी, सहायक प्राध्यापक ने 1857 के आन्दोलन में गुमनाम लोंगो के योगदान पर शोध किए जाने पर बल दिया।
डॉ• मनीषा, सहायक प्राध्यापक, इतिहास विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन में अंग्रेजो द्वारा कुप्रशासन के आरोप में अवध के अधिग्रहण पर विचार व्यक्त किया और यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि इसी कारण से अवध क्षेत्र में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम इतना व्यापक रूप धारण कर सका। डॉ• सनोवर हैदर ने अपने उद्बोधन में कहा कि 1857 के आन्दोलन का प्रारम्भ लखनऊ से हुआ इस पर भी शोध किया जाना चाहिए।
उक्त के अतिरिक्त संगोष्ठी में 45 शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र भी प्रस्तुत किए| कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत श्री अमित कुमार अग्निहोत्री, निदेशक एवं धन्यवाद ज्ञापन श्री विजय कुमार श्रीवास्तव, सहायक निदेशक संरक्षण, उत्तर प्रदेश राजकीय अभिलेखागार द्वारा किया गया।