Monday, December 9, 2024

ईटावा के लखना देवी मंदिर का ये है ऐतिहासिक महत्व

REPORT by PRAKHAR SRIVASTAV

ईटावा का कालिका माता का ये मंदिर वर्ष 1882 में लखना के राजा राव जसवंत राय ने बनवाया था | बढ़ते वक़्त की तेज रफ्तार ने स्थान का नाम लखना होने की वजह से ही वर्तमान में ये मंदिर लखनादेवी मंदिर के नाम से अधिक प्रख्यात है |

मंदिर प्रबंधक कुँवर रवि शंकर शुक्ला ने बताया कि राजा जसवंत देवी माँ के बड़े भक्त थे, वे यमुना पार कर कंधेसीरघार मंदिर प्रतिदिन दर्शन करने के लिए जाया करते थे| राजा की इच्छा थी कि एक मंदिर लखना में भी बनाया जाए, जिससे बरसात में जल स्तर बढ़ने पर यमुना पार करने की कठनाई भक्तों के सामने ना आए | उन्हीं दिनों राजा के स्वप्न में देवी माँ ने मंदिर की स्थापना का स्थान किसी पीपल के पेड़ पास करवाने के संकेत दिए, जिस दिन ही क्षेत्र के एक पीपल के पेड़ में आग लग गई, राजा ने वहीं पर मंदिर का निर्माण करवाया और ये मंदिर आज भी वहीं मौजूद है | मंदिर निर्माण के दौरान ही देवी माँ ने राजा जसवंत को स्वप्न दर्शन दे कर मंदिर में जयपुर से लाई गईं मूर्तियों की स्थापना ना कराने और मंदिर के आँगन को पक्का करवाने पर अनिष्ट हो जाने की बात कही… इसलिए ही आज भी मंदिर का आंगन कच्चा है जो कि गोबर से लीपा जाता है|

मंदिर के पिछले भाग में ही राजा जसवंत राय का किला हुआ करता था, जो आज भी जीवित है और मंदिर के प्रबंधक हों या पुजारी किले में ही निवास करते हैं | 60 बीघा में फैले इस किले के कुछ हिस्से जैसे हाथी खाने, घोड़े खाने और सैनिकों की बैरकों आदि को किराए पर भी दे रखा गया है जो कि मंदिर के रखरखाव में आर्थिक सहयोग का एक अच्छा माध्यम है| मंदिर में वर्तमान में कुल 30 कर्मचारी हैं |

समाज के विभिन्न क्षेत्रों, जातियों और संप्रदायों की आस्था इस मंदिर से जुड़ी हुई है, पुजारी श्री विनोद चौबे जी के अनुसार माता रानी के इस मंदिर में विशेष रूप से नवविवाहित जोड़ो की पूजा, उनकी बेहतर संतान उत्पत्ति की कामना के साथ होती है, साथ ही साथ बड़ी संख्या में लोग लम्बी दूरी तय कर अपने बच्चों का मुंडन कराने भी यहाँ पहुँचते हैं | संतान उत्पति की मान्यता माँगने वाले भक्तों को पूरी हो जाने पर अपनी संतान का मुंडन कराने आना पड़ता है| मुंडन मंदिर प्रांगण में ही होता है और अन्य श्रद्धालु अन्य मनोकामनाओं की पूर्ति पर झंडा चढ़ाने आते हैं |

ईटावा का ये मंदिर अपने आप में इसलिए भी खास है क्योंकि जहाँ एक ओर देश के कई कोनो के मंदिरों से छुआ-छूत की ख़बरें आती हैं तो वहीं समाज में जातिय ऊँच नींच खत्म करने के उद्देश्य से इस मंदिर में सौंदर्य व्यवस्था का जिम्मा भी उसी समुदाय के हाथों में हैं, जिस समुदाय के मंदिर प्रवेश में कई दशकों तक प्रतिबन्ध था |

मंदिर का प्रमुख आँगन कच्चा है और उसकी ऊपरी छत को भी अस्थाई रूप से खुला रख गया है, लोगों कि मान्यता है कि आँगन को पक्का करने से अनिष्ट हो जाएगा, ऐसी बात मंदिर के निर्माण के साथ ही चली आ रही है | जबकि मंदिर में माँ कालिका की कोई मूर्ति स्थापित नहीं है, मान्यता के आधार पर ही पूजा अर्चना होती है, मंदिर में प्रवेश की सीध में एक कमरा है जिसमें माता रानी की एक तस्वीर है जो कि कमरे के बाहर से आसानी से देखी जा सकती है, कमरे के अंदर दस्तक देने पर रोक है | विशेष अवसरों पर ही कक्ष में नागरिकों को आने दिया जाता है |

मंदिर के ऊपरी तल में राजा जसवंत द्वारा लाई गईं देवी माँ की उन मूर्तियों को रखा गया है, जो मंदिर में स्थापित होनी थी, मगर राजा को प्राप्त देवी माँ के स्वप्न में मूर्तियों की स्थापना की मनाही के कारण ये काम टला और राजा की मृत्यु के कारण दूसरी मूर्तियों की स्थापना का इंतज़ाम कभी हो ना सका, जिसके बाद रानी उन मूर्तियों की पूजा ऊपर ही करने लगीं और अभी भी मंदिर के कर्ता धर्ता परिवार के प्रमुख लोग उन मूर्तियों की नियमित पूजा करते हैं, जबकि आम नागरिकों के वहाँ तक पहुँचने पर प्रतिबन्ध है|

अप्रैल में चैत की नव दुर्गा में विशाल वार्षिक मेले का आयोजन मंदिर द्वारा किया जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ मौजूद होती है, इसके अतिरिक्त वर्ष में पड़ने वाली दोनों नवदुर्गा में मंदिर द्वारा सार्वजनिक भंडारा कराया जाता और सर्दियों में गरम कंबल बाटे जाते हैं |

मंदिर की विशेषता ये है कि छुआछूत को खत्म करने के लिए यहाँ दलित लोगों को पूजा व्यवस्था का जिम्मा दिया गया है तो वहीं हिन्दू – मुस्लिम एकता की मिसाल के लिए यहाँ मजार की स्थापना भी मंदिर निर्माण के दौरान ही कराई गई थी | हिन्दू मुस्लिम के अलावा भी ऊँच नींच जातिय समीकरण को तोड़ता ये मंदिर अपने आप में नायाब है, जिसे देखकर ये लगता है कि राजा जसवंत राय की हुकूमत लोकतांत्रिक रही होगी क्योंकि मंदिर के विशाल द्वार आज भी बड़ी शान से सांप्रदायिक सद्भाव और भाई चारे का संदेश दे रहे हैं और मंदिर पर लहराते झंडे मानो इस संदेश को संप्रेषित कर रहे हों|

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