Thursday, October 10, 2024

पुस्तक समीक्षा – “आँजनये जयते”

लेखक : गिरिराज किशोर 

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन

पृष्ठ : 168

मूल्य– 150 

हनुमान कथा पर आधारित उपन्यास आँजनये जयते प्रसिद्ध दिवंगत साहित्यकार पद्मश्री गिरिराज किशोर जी  का मिथकीय उपन्यास है। साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतेन्दु पुरस्कार व अन्य कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित लेखक का यह उपन्यास राजकमल प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है लेखक ने कथा का आधार तुलसीदास की रामचरितमानस को रखा है तथा संकटमोचन हनुमान के चरित्र व संघर्षों को अपने दृष्टिकोण से रखने की कोशिश की है।

उपन्यास का नाम आँजनये जयते रखने व हनुमान को आँजनये  नाम से संबोधित करने पर लेखक ने तर्क दिया कि “हनुमान नाम का मैंने इसलिए उपयोग नहीं किया क्योंकि उससे वही वानर की आकृति सामने आएगी जो परंपरागत रूप से हमारे मस्तिष्कों मे जमी हुई है”। लेखक ने हनुमान को वानर या कपीश(अर्थात बंदर) जाति का न मानते हुए उन्हे एक वनवासी व वानरवंशी समुदाय से आने वाले मनुष्य की तरह चित्रित किया है इसी तरह उन्होंने जाम्बवन को रीछ न मानते हुए उन्हे रक्ष जातीय समुदाय का बताया है।

लेखक ने उपन्यास के आरंभ मे स्वयं अंजनी पुत्र आँजनये द्वारा अपने वनवासी  वानरवंशी होने का तार्किक वर्णन करते हुए दिखाया गया हैइसके साथ ही उनके बाल्य काल में की गई क्रीडा  ऋषि मुनियों  देवताओं से वेद –वेदांग की शिक्षा ग्रहण करने के बारे मे बताया है|

लेखक ने अपने व्यक्तिगत मतानुसार आँजनये जैसे राजनय के ज्ञाता , धर्म – ज्ञानी , अद्वितीय वीर के वानर प्रजाति के होने पर संशय किया हैउपन्यास की शेष कहानी मूल रामकथा मे बगैर छेड़छाड़ किए सीता-हरण ,लंकादहन, राम रावण युद्ध सीता वनवास व उत्तरकांड से होकर गुजरती है। सम्पूर्ण कथा मे अंजनी पुत्र हनुमान की  वीरता , चंचलता,अद्भुत ज्ञान ,समर्पण, व भक्तिभाव का आलौकिक चित्रण किया गया है।

उपन्यास के अंत मे उत्तरार्ध व क्षेपक नामक दो भाग  लिखे गए हैं , जिनमे माता सीता की पुनः परीक्षा व  धरती की गोद मे समाहित होने का मार्मिक वर्णन किया गया है । आँजनये को माँ सीता के निष्कासन की सूचना ज्ञात होने के बाद वे श्री राम के समक्ष अपना विरोध दर्ज़ कराते हैं और अपने प्रभु को राजधर्म व निजी जीवन के दयित्वों की याद दिलाते हैं।

लेखक ने एक सीमा तक ही हनुमान कथा को नया स्वरूप देने की कोशिश की है ,बाकी शेष कथा मूल रामचारितमानस की ही है । प्रस्तावना मे लेखक ने भी कथा की मूल भावना को बिना बदले , कहीं कहीं स्थितियों के व्याख्या की बात स्वीकारी है। कुछ जगह जैसे लेखक जटायु व उनके भाई को गिद्ध नहीं मनुष्य कहते हैं और उनकी विलक्षण प्रतिभा को संभवत: तत्कालीन विज्ञान की देन बताते हैं , ऐसा स्पष्टीकरण वह उपन्यास के अन्य अद्वितीय दृश्यों व शक्तियों के लिए करने से बचते हैं।

उपन्यास की लेखन शैली सहज व पाठक को बांधे रखने वाली है। चूंकि राम कथा जनमानस मे विख्यात है तो पाठक के लिए लेखक के हनुमान व रामकथा  को लेकर अलग दृष्टिकोण को जानना नवीनता का अनुभव कराता है।

शिवांग श्रीवास्तव
विद्यार्थी , पत्रकारिता और जनसंचार विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय  

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